Tuesday, December 29, 2015
Saturday, December 26, 2015
Thursday, December 24, 2015
Monday, December 21, 2015
मुस्कुराहट खुद चलकर मेरे चेहरे तक आई
बस कुछ ही घंटो की बात हैं
मैं बस में घुसी हेड सेट लगाए
सब को अनदेखा करते हुए मैं सीट पर बैठ गयी
मैं लेट हो रही थी
बार - बार नज़र कलाई घड़ी पर जाती
बॉस की डाँट की थी चिंता सताती
लगा काश कोई एसी मशीन होती
जिससे मैं फॅट से ऑफीस पहुच जाती
ये तंग वातावरद की गर्मी थी मुझे सताती
मैने आँखें कर ली बंद
ताकि सुकून मिले कुछ चन्द
तभी किसीने कोहनी दे मारी
जब मैनें गुस्से से नज़रें बाई और घुमाई
नन्हें कोमल पैरों को अपनी गोद पर पाया
वो मासूम सब से अंजान
अपने पाव किसी अपरिचित पर पटकाकर मुस्कुराया
मुझे देख आँखे मिंच, मा के आँचल मे छुप गया
उसकी ये हलचल को देख मैं सब भूल गयी
कितना खूबसूरत वो अहसास था
जाने उसमे क्या ख़ास था
मुस्कुराहट खुद चलकर मेरे चेहरे तक आई
Friday, December 18, 2015
उदास मन
सारा जाग रूठा रूठा सा लगता हैं
हर पत्ता सूखा सूखा सा लगता हैं
ना जाने क्यूँ फूल भी मुरझा रहे हैं
पंछी जाने क्या गुनगुना रहे हैं
जाने क्यूँ सब उदास सा हैं
बीती बातों में एक एहसास सा हैं
नीले बदल पर मेघ है छाए
अब हमे जाने क्यू कुछ ना बाए
ना जाने सब को आज क्या हुआ हैं
सोचा तो पता इसमे मेरा ही हाथ हैं
एक छोटी सी बात हैं
की ये सब नहीं
आज सिर्फ़ मेरा मन उदास है
Monday, December 14, 2015
यदि रात ना होती
सोचो यदि रात ना होती तो क्या होता
तो कोई व्यक्ति रात मे ना सोता
दिनभर की चिंता थकावट संघर्ष से मुक्त न होता
रात विश्राम का समय है होता
पर यदि रात ना होती तो कोई नही सोता
यदि रात ना होती तो चाँद ना होता
चाँद की चांदनी पाने के लिए सारा जाग रोता
तब तारे भी ना होते
सभी तारोंकी टिमटिमाहट से अंजानहोते
कवि जो निशा, चाँद, तारों पर है लिखता
तब उनकी कलम ना चलती
और आगे कविता बनाने की प्रेरणा भी ना मिलती
जो रात मे सफेद कलियाँ है खिलती
वह भी ना होती
पूरा दिन शरीर को झुलसने वाली लू पड़ती सहनी
रहती हमेशा तापी हुई धरती
यदि रात ना होती, तो दिनकर की महत्ता ना होती
तब दिया, मोमबत्ती, टॉर्च, लाइट की ज़रूरत ना पड़ती
यदि रात ना होती तो आनंद ना होता
रजनी की मुस्कान ना होती
उल्लू अपना शिकार ना ढूँढ पता
दीवाली म्व दीपकों की महत्ता ना रह पाती
यदि रात ना होती तो चोरों को चोरी का मौका ना मिलता
ठंडी मे ग़रीबों को ठंड से दुर्दशा ना होती
पर कड़ी धूप भी तो सहन ना हो पाती
पहरेदार की नींद हराम ना होती
जिन्हें दाने दाने के लाले है
दिया जलाने के लिए.तेलबत्ती की चिंता ना होती
सड़कों पर स्ट्रीट लायटो को खर्चा ना होता
कोई एल्वा एडिसिओन का जन्म ना होता
परंतु इन सब लाभो से रात की कीमत घटती नहीं
यदि रात ना होती तो हमारा जीवन अधूरा रह जाता
दूर दूर तक आनन्द दिखाने ना पता
रात मे सपने न आते
और उन्हे करने का जोश भीना आता
क्या तुम सब अब समझे
यही रात ना होती तो क्या होता
दिए की लौ भुझहने ना पाए
एक वक़्त था, जब घोर अंधकार से साना था अपना देश
स्वतंत्रता तो रह गयी थी नाम मात्र सेश
तब एक नही, लाखो बढ़कर आगे आए
अँगरेजो पर काल की तरह मंडराए
फिरंगी को हटाने का उत्साह सबके मंन को भाए
हर कोई आज़ाद मशाल ले आए
याद करो उन लोगों की
देश के वीर जवानों की
कुछ सालो पहले ही तो
कुछ सालो पहले ही तो
देखा था हमने कुछ जोश नया
थी उनमे कोई बात नयी
उनके तो रग- रग मे देश प्रेम था समाया
उन्होने स्वदेश की खातिर ही तो रक्त बहाया
आज़ादी पाने के लिए अपना हर कटरा मिटाया
एक अजब सा नशा और जोश था उनमे
मानो किया हो मधूसला का सोपान उन्होने
अपनी ज़िम्मेदारी वे निभा गये
हमें एक सीख सीखा गये
पर आज क्यूँ सबने स्वार्थ की ओर खुद मूह मोड़ लिया
कहा खो गया है वो जज़्बा
कहते हो आम इंसान हो तूम
वी भी तो इंसान थे,
वे भी थे प्यारे मा बाप के
प्यार से सिंचा था जिन्हे
पर आपनी परवाह कब थी उन्हे
गोली से हुए लाहुलुहान वे
कुछ जल गये कुछ दफ़नाए गये
पर मरते मरते भी वे कह गये
हम रहे या ना रहे.
हमारा वतन सलामत रहे
हमारे देश की आन, मान, और शान बरकरार रहे
चाहे इसके लिए हम जो भी सहे
नत मस्तक सिश हमारा उन वीरो के नाम
जिन्होने किया अपना सर्वस्वा अपने देश के नाम
याद रहे ये दिए की लौ भुझहने ना पाए!!!!!!
Sunday, December 13, 2015
क्या ये इंसान है
हृदय संकीर्ण हो गया है
पहले यादों में जिया जाता था
पर अब यादें आने का समय नहीं
क्या ये इंसान है
कोई रहा हो कृतघना तुम पर जितना भी
पर अब धन्यवाद देने का समय नहीं है
उपर से उनकी कृतघ्नता को पैसो मे तोला जाता है
क्या ये इंसान है
पहले उँची सोच से लोगों को परखते थे
पर अब उँची पदवी ही उनका चरित्रा प्रदर्शक बन गया है
धन का तो उच्च पदवी वालों के घर पे है बसेरा
निर्धन को नहीं दिखाता धन अपना चेहरा
क्या ये इंसान है
ये कैसी विडंबमा है, लोग धन के पीछे भागते है
भाई- भाई को भी ना पहचानते है'
बस धन दौलत को ही अपना सगा मानते है
अब कहो, क्या ये इंसान है
क्या सच में इस बढ़ती जनसंख्या के बीच
हृदय संकीर्ण हो गया है
Saturday, December 12, 2015
Why the emotions are short lived?
I saw a old man
On a street road
Carrying a heavy load
He was struggling to walk
& I was hesitant to help or to talk
I go further...
Came across a beggar lady
Who seemed extremely needy
I cried.
But soon my tears dried
Looked as if my instinct lied
Wondering...Why the emotions are so short lived?
Some are noticed & some go intentionally unnoticed.
Tuesday, December 8, 2015
Dayara
जब रात में थक कर कुछ सोचती हूँ
लगता है की शायद शरीर पर सीलन सी पड़ गयी है
कुछ समय से बेरोज़गार सी पड़ी है
अपने आपको सर्कस के जोकर सा पाती हूँ
सासों में घुटन, तंग हवओ में जीती हूँ
दोष किसका कहूं, शिकायत किससे करूँ,
रोजमर्रा के बोझ में इच्छायें दम तोड़ने लगी है
आख़िर मेरी ज़िंदगी कहा जा रही है
इन चार नपी तुली लाइनों के दायरों मे दबी जा रही है
लगता है की शायद शरीर पर सीलन सी पड़ गयी है
कुछ समय से बेरोज़गार सी पड़ी है
अपने आपको सर्कस के जोकर सा पाती हूँ
सासों में घुटन, तंग हवओ में जीती हूँ
दोष किसका कहूं, शिकायत किससे करूँ,
रोजमर्रा के बोझ में इच्छायें दम तोड़ने लगी है
आख़िर मेरी ज़िंदगी कहा जा रही है
इन चार नपी तुली लाइनों के दायरों मे दबी जा रही है
Sunday, December 6, 2015
नोट लो वोट दो
अब नेता बनना आसान हुआ
बिन कुछ किए ही नेता महान हुआ
क्या कलयुग आ गया है
हर नेता बोल रहा है
"नोट लो वोट दो"
हर तरफ हुए प्रचलित ये नारे
अब सब फिरते है बनने को नेता मारे- मारे
फिर वह हो चाहे शादीशुदा या हो कवारे
या हो लालू या हो भालू
सब बन जाते महान है
क्योकि सबका नारा यही है
"नोट लो वोट दो"
नेता अनपढ़ हो, चोर हो, डाकू हो या हो मवाली
या फिर उनकी ज़बान पर रहती हो गाली
पद पाने की लालसा में हर हद पार कर डाले
दसो गूँडो को प्रचार के लिए पाले
वे भासद दे ऐसा जैसे सच्चे नेता है
पर याद रखे वे सच्चे अभिनेता है
लगे वही करेंगे हमारी और समाज की सेवा
करेंगे जन की भली तरह से सेवा
इसी मे उनके मन को मिलेगा मेवा
पर वे नेता बनाने के बाद
चल दे अपनी शतरंज की चाल
मुकर पीछे हट जाए आपने भाषण मे दिए वादे से
नकार दे अपनी सारी बात
यह खेल है धन का
क्यूकी हर नेता बोल रहा है
"नोट लो वोट दो"
आज जो दे अच्छा भाषण सो है नेता
अब तो डर है आधी आबादी बन बैठे न नेता
देखो क्यूकी नेता बनना आसान हुआ
बिन कुछ किए ही नेता महान हुआ
तुम जो बैठे इसे पढ़ रहे हो
अब तुम भी राजनीति मे पाव धरो
नेता का पद तुम स्वीकार करो
"नोट लो वोट दो"
Thursday, December 3, 2015
ख़याल
ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती
वो तो आपने में ही दौड़ लगता है
अपने को व्यस्त कर
जाने मैं किसे छलती थी
मैं तो स्थिर बैठी थी
पर मेरे ख़याल चारों दिशा में दौड़ लगाते थे
लगता था आँखों ने वो लम्हा क़ैद कर लिया हो
और आज रिप्ले का बटन दबा दिया हो
अब क्या करे, यादों की तार तो दिल से जुड़ी होती है
मैं तो दिल की सुनती थी
पर ये दिल कब किसी की सुनता है
सच है काबू तो दिल और दिमाग़ पे चलता है
तो ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती
Monday, November 30, 2015
Tuesday, November 24, 2015
महफूज़
आज आतंक का कोहरा छाया है
हर तरफ दिलो में भड़कती ज्वाला है
जिनमे न वे अपना अस्तित्व बचाते है
परन्तु अन्यों को भी मिटाते है
अब रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |
आज आतंक की जड़े चारो ओर सुलगी है
जिसमे पीड़ित हो कई माये अपने बच्चो के लिए रोई है
आँखों में दर्द और डर समाया है
प्रेम का भाव मनुष्य कही दफ़ना आया है
अब रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |
हर तरफ लाचारी, बेबसी ने हाथ बढ़ाया है
आतंकवाद ने अपना झंडा फहराया है
हर तरफ आग की लपते है
अब तो पेड़ के तले भी ना छाया है
अब रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |
हाय रे, अब भी समय है
इए समस्या से लड़ना होगा
और इस पर विजय पा इसे जड़ करना होगा
अरे! देखो कही देर न हो
यह घुल न जाये पूरे विश्व में विष की तरह
इससे पहले ही कुछ कर गुज़रना होगा
इस आतंकवाद को हमें मिलकर मिटाना होगा
जिसके कारण रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |
Monday, November 16, 2015
Sunday, November 15, 2015
Dance Floor
ना जाने क्या मज़ा है
Dance Floor की रंग बिरंगी जलती -बुझती लायटो में
लोग एक लय में थिरकने लगे
खुद में मस्त हो कुछ बहकने लगे
DJ ने किया म्यूज़िक लाउड
हॉल मे अपने आप बढ़ गया क्राउड
कुछ दीवाने अपने हर move पे हो रहे थे proud
तो कुछ यूँ ही झूमते थे, जैसे आसमान मे mad cloud
जहा सब नाचने में है खोए
वही कुछ चेयर पे बैठे करते अपने head को Shake
इसमे किसी की कोई नही Mistake
ये है Dance Floor
ये नही करता किसी को bore
Friday, October 16, 2015
नफ़रत की दीवार
और एक तेरा पक्ष है
नफ़रत की इस दीवार पर साथी एक पैगाम
तू भी लिख
ये बतला, कब लोगो से परे गोलियाँ तेरी दोस्त बन गयी
ये कैसा रोष
हुई तेरी चेतना बेहोश
आँखे मूंदकर बस गोली चला दी
कभी ये सोचा उसके पीछे भी कोई रोता होगा
किसी की पत्नी को बेवा और
बच्चों को यतीम करते समय
तेरे हाथ कभी नही कापते
चिखते गिड़गिदते लोगो का ख़ौफ़ देख
शायद हृदय के किसी कोने मे द्वंद भी तो होता होगा
तेरी जिंदगी के मायने क्या खून ख़राबा है
तो ये जिंदगी, जिंदगी नही छलावा है
दिन भर की दहसदगीर्दी के बाद
रात मे क्या सपने लेकर सोता होगा
नफ़रत की इस दीवार पर साथी
अपना पैगाम तू भी लिख.
Monday, July 13, 2015
तुम याद बहुत आओगे
चले गए दूर तुम अब
लौट के न आओगे
फिर भी तुम हमें बड़ा रुलाओगे'
और तुम याद बहुत आओगे
हमारे बीच फ़ासले है, दरमियाँ है
फिर भी हम दोनों के दिलो में
तुम जितना भी दूर जाओगे
फिर भी तुम याद बहुत आओगे
अब न जाने कब किस मोड़ पर मिलना हो
तब तुम्हारा बदला स्वरुप देख पछताएंगे
पर ये सोच हम अपने दिल समझाएंगे
की कही न कही हम भी बदले है
इस बदलाव में दोनों का दोष है
क्योंकि समय की गति बलवान होती है
अब बस मुझे तुम ख्वाबो में
याद बहुत आओगे
लौट के न आओगे
फिर भी तुम हमें बड़ा रुलाओगे'
और तुम याद बहुत आओगे
हमारे बीच फ़ासले है, दरमियाँ है
फिर भी हम दोनों के दिलो में
तुम जितना भी दूर जाओगे
फिर भी तुम याद बहुत आओगे
अब न जाने कब किस मोड़ पर मिलना हो
तब तुम्हारा बदला स्वरुप देख पछताएंगे
पर ये सोच हम अपने दिल समझाएंगे
की कही न कही हम भी बदले है
इस बदलाव में दोनों का दोष है
क्योंकि समय की गति बलवान होती है
अब बस मुझे तुम ख्वाबो में
याद बहुत आओगे
Sunday, July 5, 2015
" क्या ह्म सही माईने में दिवाली है मानते ?"
हम पूछेंगे जब क्या है दिवाली
हम क्यों है इसे मानते
लोग कहेंगे उस दिन बम, अनार, चकरी, रौकेट, फटके, फुलझरी है जलाते
पर सत्य पर असत्य की विजय हुई थी ये वह नहीं जानते
इस दिन तम को प्रकाश ने हरा था ये इतना नहीं समझते
क्या ये सही माईने में दिवाली है मानते ?
इस दिन नए कपडे, मिठाई, पकवान, फटाके भर- भर है लाते
पर एक नाय विचार भी तो नहीं अपनाते
संपन्न को ढ़ेरो मिठाइयाँ है बाँटते
पर द्वार पर खड़े भूखे- नंगो को है धुत्काराते
क्या ह्म सही माईने में दिवाली है मानते ?"
अगर फटाके जलना है दिवाली
तो आपको ये मानना होगा
हम केवल छोटी दिवाली को है जानते
और आतंकवादी घातक बमों के गोलों के दम पर बड़ी दिवाली है मानते
खाने- पिने का टोटारहता है घर में
पर फिर भी अपनी संजोयी संपत्ति को जुए में है उड़ाते
क्या ह्म सही माईने में दिवाली है मानते ?
वो भूली बिसरी बाते
जब नानी-दादी अपने पोता-पोती को कहानी थी सुनती
पर अब वह खुद अंधियारी कुटिया में दुबक कर रह जाती
व्यर्थ है दिवाली का मानना
जब तुमने इसका अर्थ न जाना
हम हर साल दिवाली का इंतज़ार है करते
पर क्या ह्म सही माईने में दिवाली है मानते ?
लो फिर आई दिवाली
जगमग हुआ सारा जग
मीठे पकवान सब मिलकर है बनाते
पर चलो इस बार इसे अपने लिए नहीं औरों के लिए बनाये
अंधियारी गलियों में खुशियों का दीप जलाये
चलो सही माईने में दिवाली मनाये!!
तो आपको ये मानना होगा
हम केवल छोटी दिवाली को है जानते
और आतंकवादी घातक बमों के गोलों के दम पर बड़ी दिवाली है मानते
खाने- पिने का टोटारहता है घर में
पर फिर भी अपनी संजोयी संपत्ति को जुए में है उड़ाते
क्या ह्म सही माईने में दिवाली है मानते ?
वो भूली बिसरी बाते
जब नानी-दादी अपने पोता-पोती को कहानी थी सुनती
पर अब वह खुद अंधियारी कुटिया में दुबक कर रह जाती
व्यर्थ है दिवाली का मानना
जब तुमने इसका अर्थ न जाना
हम हर साल दिवाली का इंतज़ार है करते
पर क्या ह्म सही माईने में दिवाली है मानते ?
लो फिर आई दिवाली
जगमग हुआ सारा जग
मीठे पकवान सब मिलकर है बनाते
पर चलो इस बार इसे अपने लिए नहीं औरों के लिए बनाये
अंधियारी गलियों में खुशियों का दीप जलाये
चलो सही माईने में दिवाली मनाये!!
Sunday, June 21, 2015
ग़ज़ल
जो लौट कर गये थे
कहकर की आनेवाले है
फिर पलटकर क्यों देखा भी नहीं
हमने उसको टोका नहीं
उसने ख़ुद को रोका नहीं
और तकदीर ने दिया, कोई मौका भी नहीं
इंतज़ार जो मेरा नसीब बन गया है
उसे इसकी खबर भी नहीं
कर दिया रुसवा भरे बाज़ार में, बस तेरे इनकार ने
जाने क्यों अब इतनी बेमुर्रवत हो गयी है जिंदगी
कभी देखी थी जन्नत, पर अब मिलन ख़यालो में भी नहीं
Saturday, June 13, 2015
बारिश का मौसम
जब भी नभ में बादल घिरते है
तब नभ से शीतल नीर बरसते है
मेघ गरज- गरज कर हमें संगीत सुनते है
ये अपनी गरिमा से हमें लुभाते है
नन्हीं -नन्हीं बूंदे धरती पर गिरती है
मन को सौंधी खुसबू से भरती है
हर तरफ खुशी की लहरे है छायी
किसान बारिश के आगे नत मस्तक हो जाते है
सुख से अपनी बींजो को उपजाते है
चाक की श्रुधा और प्यास जाएगी
देखा अब हरियाली कालीन धरा पर बिछ जाएगी
वन में मयूर पर फैलाये नृत्य करने लगे है
बच्चे भी पानी में हिलोर, उछल-कूद करने लगे है
इस बारिश की बौछार में करे गरम चाय की प्याली
सब के चेहरों पर खिल उठे लाली
अब रहे न कोई गम
लो आया बारिश का मौसम
Friday, June 5, 2015
नर्तकी अब नाच कर ले
नर्तकी अब नाच कर ले
बैठे चारो ओर तेरे घर को घेरे
मैं भी आया द्वार तेरे
मैं भी आया द्वार तेरे
अपने घर से मुँह फेरे
नर्तकी अब नाच कर ले
नर्तकी तेरा नाच देखा
लोंगो ने तेरे लिए कितना पैसा फेंका
लेकिन मैं तुझे क्या दूँ, क्योंकि मैं अकेला
मेरे संग यहाँ मेरा न साथी न कोई चेला
नर्तकी अब नाच कर ले
लोग कहते है द्वार तेरे कभी न जाना
बदनाम होगा जिसने ये कहना न माना
पर तेरे द्वार आकर मैंने कितना सुकून पाया
कितनी गजब की है माया
फिर मैंने सोचा
सच में तेरा जीवन है क्या
तू गाती दुसरो के लिए है
नाचती किसी और के लिए है
सुख देती है दुसरो को
और स्वयं आंसुओ के घूंट पीती
तेरा क्या
फिर भी बदनाम रहती तू
नर्तकी फिर भी नाच कर ले तू
Monday, May 25, 2015
Saturday, May 23, 2015
अंडरवर्ल्ड डॉन और पुलिस
Underworld, Don, भाई, गुंडे, Terrorist, Naxalite सच में एक दयनीय जीवन जीते है। उनके पास पैसा खूब होता हैं, पर आज़ादी छिन जाती हैं। छुप - छुप कर जीना पड़ता है। मार काट तो जीवन का हिस्सा बन जाता है। वे हज़ारो निहत्थे आम आदमी को बिना किसी कसूर मौत की नींद सुला देते है। यही मार काट उनकी शक्ति का परिचायक बन जाता है। मरते समय वे लोंगो की आँखों में ख़ौफ़, आँसू और डर देख कर प्रसन्न होते है, उन्हें मज़ा आता है। डराना-धमकाना तो उनका आम कार्य है। इस क्षेत्र में यदि कोई कच्चे दिलवाला आ जाये तो वह उसी के बीच पीस कर रह जाता है। रोज़-रोज़ खून की नदियों को देखते -देखते एक दिन न जाने कब उसका खून भी बह जाता हैं । उनकी मृत्यु कब, कहाँ, कैसे हो जाये उन्हें नहीं पता। पर इतना ज़रूर पता है उन्हें मारना ज़रूर है। पुलिस की गोली से या अपने ही किसी भाई के हाथ से। इन सब लोंगो में यह बात सामान पायी जाती है की वैसे वे ख़ुशी से हज़ारों को गोली से उड़ा देते है और तब भी उनकी आँखों में कोई खौफ, डर या दर्द नहीं होता पर अपनी मृत्यु के समय उन्हें नाना प्रकार के डर, परिवार की याद, गलती का एहसास हो जाता है। तब वही व्यक्ति जो किसी की लाइफ की कोई कद्र नहीं करता है जिसके हांथो से हज़ारों की जिंदगी होती है (आज) एकाएक अपनी मृत्यु आने पर ज़िन्दगी की भीख मांगता है। पर आखिर में इन्हे पुलिस अपनी गोली का निशाना बना लेती है । जिसे वे encounter का नाम देते है । उनके शव का ना अंतिम संस्कार होता है ना वो दफनाए जाते है । जिनके बाद ना उनके नाम सुनाई देते है ना काम। इस मामले में पूरा दोष इनको देना गलत है। पुलिस को एनकाउंटर के अलावा कोई अलग रास्ते इख़्तियार करने चाहिए जिससे वे इन्हे पकड़ सके और सुधार सके, क्योंकि एनकाउंटर एक अप्रिय घटना है। इसमें कई बार आम इंसान भी शिकार हो जाया करते है।पर पुलिस करे तो क्या करे। ऐसे लोग समझने से समझते भी तो नहीं। उनका दिल नहीं, दिमाग नहीं, सिर्फ उनकी गोली बोलती है। उनके भाव नहीं होते बस पिस्तौल चलती है। उनमे देश प्रेम की भावना नहीं केवल पैसा बोलता है। पैसे की खातिर वो देश को भी बेंच देते है। ऐसे लोगों को क्या एक मौका भी दें उचित होगा ? ....
पर मनुष्य को कब और किसने ये अधिकार दे दिया की वह ईश्वर के रूपों को यूहीं मौत की घाट उतार देना, यूहीं उनकी जान लेले। जितनी निर्दय, क्रूरता से ये डॉन, भाई लोग मारते है। उनसे भी दो हाँथ ऊपर होती है पुलिस। जो उन्ही को उससे भी अधिक निर्दयता से गोली मार देते है। ये गोली के शहंशाह पुलिस की ही गोली खाकर अपना दम तोड़ देते है। अब आप समझ ही रहे है। हिंसा से किसी का भी कभी भला नहीं हो सकता है। यदि आप हिंसा से कुछ प्राप्त करते तो हिंसा ही उसे डूबा ले जाती है। गांधीजी भी इसे भली भांति जानते थे इसलिए तो उन्होंने अहिंसा का साथ दिया और तभी तो उन्हें कोई आपने लक्ष्य को पाने से रोक न सका और हम अब आज तक स्वतंत्र है और रहेंगे।
Tuesday, April 28, 2015
काश दिल में यादें लिखने वाली पेंसिल का भी कोई रबर होता
काश दिल में यादें लिखने वाली
पेंसिल का भी कोई रबर होता
वक़्त बेवक़्त आती यादो को रोक पाती
मेरे दिल का दरवाज़ा अक्सर खुलता बंद होता रहता है
कभी दिनों में, कभी घण्टों में, तो कभी पलो में
रह रह कर दस्तक दे जाती है
ये वक़्त और जगह नहीं देखती है
बेवक़्त ही सताती है
कभी तो तन्हा भी छोड़ जाती हैं
सच में, इसे बहला पाना आंसा नहीं
इसलिए सोचती हुँ
काश दिल में यादें लिखने वाली
पेंसिल का भी कोई रबर होता
Tuesday, April 21, 2015
Sunday, April 19, 2015
एक छोटी सी खिड़की से कितनी दुनिया देख चूका
मैं तीसरे माले पर रहता हूँ
अपने में कुछ खोया- खोया
सब से बेखबर
अपनी छोटी सी चार दिवारी में बंद दुनिया
घर में एक छोटी सी खिड़की है
जो मुझे दूसरों से कभी कबार जोड़ देती है
बैठे- बैठे वहाँ से आते जाते लोगों को देखा करता हूँ
उनकी हँसी में अपनी हँसी खोजा करता हूँ
नाख़ून चबाता जब सामने से कोई निकले
मेरा दिल ! क्या हुआ ये जानने मन मचले
रुआँसा सा जब कोई दबे पाँव चला जाता है
मेरी जिज्ञासा भी बढ़ा जाता है
सोचता हूँ, पूंछूं क्या हुआ ?
पर तहज़ीब का दायरा याद आ जाता हैं
बॉल लिए जब कोई अपनी धुन में चला जाता हैं
कभी गेंद आकाश में उछाले, तो कभी ज़मीन पर
कभी उँगलियों पर रखकर करतब दिखाता
उसे देख मझे मेरा बचपन याद आता
सर्दी के मौसम में, मैं कोट पे कोट डाले बैठता हूँ
तो खिड़की के बाहर बिखारी को मैं नंगे बदन सुकड़ता सा पता हूँ
तब अपने शरीर पर स्वेटर और ओवरकोट के अंदर भी
शरीर पर उठे काँटों के अहसास से सिहर सा जाता हूँ
जब चार कंधे शव को गली से ले जाते
तो उसके परिजन का शोक देख मेरे आँखों में आँसूं छलक आते
मैं इस खिड़की पर लटका देखता हूँ हज़ारों नज़रें
हज़ारों चेहरे, कोई नाचता, कोई गाता, कोई रोता और कोई मुस्कुराता
कितनी अलग है ये दुनियाँ
खिड़की के अन्दर एक दुनियाँ
खिड़की के बाहर अनेकों दुनियाँ
Saturday, April 18, 2015
Tuesday, April 14, 2015
Short Cut
शॉर्टकट
साधारण मार्ग से सब है अंजान
रहती है शॉर्टकट की सबको तलास
Cheating कर exam में आते है first
Practical result हो जाता है worst
शॉर्टकट के प्रचलन ने लाई जीवन में कितनी complications
अब SMS का ज़माना है
तो briefing को हमें निभाना है
अब शॉर्टकट सर चढ़कर बोल रहा है
पिताजी को अब पा सारी दुनिया बोल रहा है
जब बच्चे ने एक important बात का जिक्र बाप से करना चाहा
पिता बोले "flight का time हो रहा है
ज़रा शार्ट में बताना "
बेटा बोला, ठीक है ज़रा 4000 का नोट तो पकड़ना
पिता ने कहा how rude
बेटा बोला Daddy I was going according to your mood
कल मेरा जन्मदिन है दोस्तों को पार्टी है देनी
बाप बोला मिल जाएंगे, ऐसे पहले क्यों नहीं बताया
पर Daddy मैंने तो बस आपका समय बचाया
आखिर क्यों?
कुछ पल के परिश्रम से घबराकर
लोग शॉर्टकट को अपनाते है
देखो स्वयं ही मुसीबत से घिर जाते है
शार्टकट सारी अच्छी बातों को करता है कट
फिर भी सब बोले
Long route ही क्यों
"Lets take the shortcut"
साधारण मार्ग से सब है अंजान
रहती है शॉर्टकट की सबको तलास
Cheating कर exam में आते है first
Practical result हो जाता है worst
शॉर्टकट के प्रचलन ने लाई जीवन में कितनी complications
अब SMS का ज़माना है
तो briefing को हमें निभाना है
अब शॉर्टकट सर चढ़कर बोल रहा है
पिताजी को अब पा सारी दुनिया बोल रहा है
जब बच्चे ने एक important बात का जिक्र बाप से करना चाहा
पिता बोले "flight का time हो रहा है
ज़रा शार्ट में बताना "
बेटा बोला, ठीक है ज़रा 4000 का नोट तो पकड़ना
पिता ने कहा how rude
बेटा बोला Daddy I was going according to your mood
कल मेरा जन्मदिन है दोस्तों को पार्टी है देनी
बाप बोला मिल जाएंगे, ऐसे पहले क्यों नहीं बताया
पर Daddy मैंने तो बस आपका समय बचाया
आखिर क्यों?
कुछ पल के परिश्रम से घबराकर
लोग शॉर्टकट को अपनाते है
देखो स्वयं ही मुसीबत से घिर जाते है
शार्टकट सारी अच्छी बातों को करता है कट
फिर भी सब बोले
Long route ही क्यों
"Lets take the shortcut"
Sunday, April 5, 2015
Ghazal
माना की मसले बहुत है दुनिया में
और ये रिस्ते भी कम संजीदा ऩही
पर क्या ज़िंदगी अब इतनी भी मयस्सर नहीं
की सुकून के कुछ लम्हे गुज़ार ले...
सुना है, ग़मों से रूबरू होते ही
शकशियत में और निखार आ जाता है
लो ये भी कर लिया
पर अब भी कुछ नहीं बदला
न फ़ज़ाए बदली
ना ये नज़ारे बदले
गीले भी है, शिकवे भी है
और खड़े सब मसले भी है
शायद ये ही ज़िन्दगी है और शायद नहीं भी है
Saturday, March 28, 2015
खोई सी उम्मीद
आज मेहनत नहीं नसीब की बात करता है आदमी
अपनों की नहीं सिर्फ अपनी बात करता है आदमी
अब विचार संकीर्ण होते जा रहे है
मुर्दा घर में भी बड़े शान से चलता है आदमी
ईमानदारी ने जैसे आँख मूँद ली हो
बेशर्मी का नंगा नाच दिखा रहा है आदमी
आज डर का माहौल सजा है
हर तरफ़ बमो और विस्फोटो का चर्चा छिड़ा है
कुछ को ये विनाश छूकर गया है
तो कइयों का चिथड़ा पड़ा है
आज ईश्वर को मन नहीं मंदिरो में खोजा जाता है
जब अन्याय से लड़ने को कोई अकेला खड़ा आवाज़ लगता है
तब दूसरा उससे कुछ कदम दूर चला जाता है
और न्याय भी चादर ओढ़ मीठी नींद सो जाता है
क्या ये सुन्दर गुलस्ता बिखर जाएगा
या कोई इसकी सुरक्षा का भार उठाएगा
शिकायत तो हम तुम हर पल किया करते है
चलो उम्मीद की ज्योत जलाए
एक कदम तुम चलो तो एक कदम हम चलते है
Thursday, March 26, 2015
खुदगर्ज़ ज़माना
खुदगर्ज़ ज़माना
इस खुदगर्ज़ ज़माने का साथ हम निभाए कैसे?
छुप बैठा है भेड़ की खाल में भेड़िया
उसे अब हम पहचाने कैसे?
सब को खुला मैदान चाहिए, घर नहीं माकान चाहिए
कोई स्वछंद परिंदा पर फैलाए तोह कैसे?
इस खुदगर्ज़ ज़माने का साथ हम निभाए कैसे?
घड़ी की नोक पर भागता है आदमी
कुछ बात करनी थी, पल भर के लिए उसे ठहराए कैसे?
क्रोध भरा है भीतर, पर प्यार से इन्हें समझाए कैसे?
लहू अब जम सा गया है
वक्त भी थम सा गया है
जहाँ ज़िंदगी से है मौत सस्ती
डराती है ये वीरान बस्ती
सोए हुए इस आदमी को अब जगाये कैसे?
घुटन की इस ज़ंजीर से बाहर खुद को निकाले कैसे?
ये कहने को तो कहता जाता है
भाषण, नारेबाजी तोह कही आर्टिकल छपवाता है
कहने से परे, कहने की पहलकदमी कोई नहीं करता
वो पहल, वो शुरूआत कोई करे तो कैसे ?
इस खुदगर्ज़ ज़माने का साथ हम निभाए तो कैसे?
Saturday, March 14, 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)