Monday, December 14, 2015

यदि रात ना होती


सोचो यदि रात ना होती तो क्या होता
तो कोई व्यक्ति रात मे ना सोता 
दिनभर की चिंता थकावट संघर्ष से मुक्त न होता
रात विश्राम का समय है होता 
पर यदि रात ना होती तो कोई नही सोता
यदि रात ना होती तो चाँद ना होता
चाँद की चांदनी पाने के लिए सारा जाग रोता
तब तारे भी ना होते
सभी तारोंकी टिमटिमाहट से अंजानहोते
कवि जो निशा, चाँद, तारों पर है लिखता
तब उनकी कलम ना चलती
और आगे कविता बनाने की प्रेरणा भी ना मिलती
जो रात मे सफेद कलियाँ है खिलती
वह भी ना होती
पूरा दिन शरीर को झुलसने वाली लू पड़ती सहनी
रहती हमेशा तापी हुई धरती
यदि रात ना होती, तो दिनकर की महत्ता ना होती
तब दिया, मोमबत्ती, टॉर्च, लाइट की ज़रूरत ना पड़ती
यदि रात ना होती तो आनंद ना होता
रजनी की मुस्कान ना होती
उल्लू अपना शिकार ना ढूँढ पता
दीवाली म्व दीपकों की महत्ता ना रह पाती
यदि रात ना होती तो चोरों को चोरी का मौका ना मिलता
ठंडी मे ग़रीबों को ठंड से दुर्दशा ना होती
पर कड़ी धूप भी तो सहन ना हो पाती
पहरेदार की नींद हराम ना होती 
जिन्हें दाने दाने के लाले है
दिया जलाने के लिए.तेलबत्ती की चिंता ना होती
सड़कों पर स्ट्रीट लायटो को खर्चा ना होता
कोई एल्वा एडिसिओन का जन्म ना होता
परंतु इन सब लाभो से रात की कीमत घटती नहीं
यदि रात ना होती तो हमारा जीवन अधूरा रह जाता
दूर दूर तक आनन्द दिखाने ना पता
रात मे सपने न आते
और उन्हे करने का जोश भीना आता
क्या तुम सब अब समझे 
यही रात ना होती तो क्या होता

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