बस कुछ ही घंटो की बात हैं
मैं बस में घुसी हेड सेट लगाए
सब को अनदेखा करते हुए मैं सीट पर बैठ गयी
मैं लेट हो रही थी
बार - बार नज़र कलाई घड़ी पर जाती
बॉस की डाँट की थी चिंता सताती
लगा काश कोई एसी मशीन होती
जिससे मैं फॅट से ऑफीस पहुच जाती
ये तंग वातावरद की गर्मी थी मुझे सताती
मैने आँखें कर ली बंद
ताकि सुकून मिले कुछ चन्द
तभी किसीने कोहनी दे मारी
जब मैनें गुस्से से नज़रें बाई और घुमाई
नन्हें कोमल पैरों को अपनी गोद पर पाया
वो मासूम सब से अंजान
अपने पाव किसी अपरिचित पर पटकाकर मुस्कुराया
मुझे देख आँखे मिंच, मा के आँचल मे छुप गया
उसकी ये हलचल को देख मैं सब भूल गयी
कितना खूबसूरत वो अहसास था
जाने उसमे क्या ख़ास था
मुस्कुराहट खुद चलकर मेरे चेहरे तक आई
No comments:
Post a Comment