Monday, November 30, 2015

मैं और मेरी कलम

मैं ज़रा नाराज़ हूँ
जाने क्यूँ मेरी कलम कुछ लिखने को तैयार नही

शायद मेरी कलम ने मेरी बात मानना छोड़ दिया है

मैं और मेरी कलम घंटो साथ बैठा करते है
पर काग़ज़ तो अब भी कोरा का कोरा है
कोई तो समझाए मेरी कलाम को
ये बेरूख़ी अब नही अच्छी

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