Monday, December 21, 2015

मुस्कुराहट खुद चलकर मेरे चेहरे तक आई



बस कुछ ही घंटो की बात हैं
मैं बस में घुसी हेड सेट लगाए
सब को अनदेखा करते हुए मैं सीट पर बैठ गयी
मैं लेट हो रही थी
बार - बार नज़र कलाई घड़ी पर जाती
बॉस की डाँट की थी चिंता सताती
लगा काश कोई एसी मशीन होती
जिससे मैं फॅट से ऑफीस पहुच जाती
ये तंग वातावरद की गर्मी थी मुझे सताती 
मैने आँखें कर ली बंद
ताकि सुकून मिले कुछ चन्द
तभी किसीने कोहनी दे मारी
जब मैनें गुस्से से नज़रें बाई और घुमाई
नन्हें कोमल पैरों को अपनी गोद पर पाया 
वो मासूम सब से अंजान
अपने पाव किसी अपरिचित पर पटकाकर मुस्कुराया
मुझे देख आँखे मिंच, मा के आँचल मे छुप गया
उसकी ये हलचल को देख मैं सब भूल गयी
कितना खूबसूरत वो अहसास था
जाने उसमे क्या ख़ास था
मुस्कुराहट खुद चलकर मेरे चेहरे तक आई

Friday, December 18, 2015

Shayari


उदास मन


सारा जाग रूठा रूठा सा लगता हैं
हर पत्ता सूखा सूखा सा लगता हैं
ना जाने क्यूँ फूल भी मुरझा रहे हैं
पंछी जाने क्या गुनगुना रहे हैं
जाने क्यूँ सब उदास सा हैं
बीती बातों में एक एहसास सा हैं
नीले बदल पर मेघ है छाए
अब हमे जाने क्यू कुछ ना बाए
ना जाने सब को आज क्या हुआ हैं
सोचा तो पता इसमे मेरा ही हाथ हैं
एक छोटी सी बात हैं
की ये सब नहीं
आज सिर्फ़ मेरा मन उदास है

Monday, December 14, 2015

यदि रात ना होती


सोचो यदि रात ना होती तो क्या होता
तो कोई व्यक्ति रात मे ना सोता 
दिनभर की चिंता थकावट संघर्ष से मुक्त न होता
रात विश्राम का समय है होता 
पर यदि रात ना होती तो कोई नही सोता
यदि रात ना होती तो चाँद ना होता
चाँद की चांदनी पाने के लिए सारा जाग रोता
तब तारे भी ना होते
सभी तारोंकी टिमटिमाहट से अंजानहोते
कवि जो निशा, चाँद, तारों पर है लिखता
तब उनकी कलम ना चलती
और आगे कविता बनाने की प्रेरणा भी ना मिलती
जो रात मे सफेद कलियाँ है खिलती
वह भी ना होती
पूरा दिन शरीर को झुलसने वाली लू पड़ती सहनी
रहती हमेशा तापी हुई धरती
यदि रात ना होती, तो दिनकर की महत्ता ना होती
तब दिया, मोमबत्ती, टॉर्च, लाइट की ज़रूरत ना पड़ती
यदि रात ना होती तो आनंद ना होता
रजनी की मुस्कान ना होती
उल्लू अपना शिकार ना ढूँढ पता
दीवाली म्व दीपकों की महत्ता ना रह पाती
यदि रात ना होती तो चोरों को चोरी का मौका ना मिलता
ठंडी मे ग़रीबों को ठंड से दुर्दशा ना होती
पर कड़ी धूप भी तो सहन ना हो पाती
पहरेदार की नींद हराम ना होती 
जिन्हें दाने दाने के लाले है
दिया जलाने के लिए.तेलबत्ती की चिंता ना होती
सड़कों पर स्ट्रीट लायटो को खर्चा ना होता
कोई एल्वा एडिसिओन का जन्म ना होता
परंतु इन सब लाभो से रात की कीमत घटती नहीं
यदि रात ना होती तो हमारा जीवन अधूरा रह जाता
दूर दूर तक आनन्द दिखाने ना पता
रात मे सपने न आते
और उन्हे करने का जोश भीना आता
क्या तुम सब अब समझे 
यही रात ना होती तो क्या होता

दिए की लौ भुझहने ना पाए

एक वक़्त था, जब घोर अंधकार से साना था अपना देश
स्वतंत्रता तो रह गयी थी नाम मात्र सेश
तब एक नही, लाखो बढ़कर आगे आए
अँगरेजो पर काल की तरह मंडराए
फिरंगी को हटाने का उत्साह सबके मंन को भाए
हर कोई आज़ाद मशाल ले आए 
याद करो उन लोगों की
देश के वीर जवानों की
कुछ सालो पहले ही तो
कुछ सालो पहले ही तो 
देखा था हमने कुछ जोश नया
थी उनमे कोई बात नयी
उनके तो रग- रग मे देश प्रेम था समाया
उन्होने स्वदेश की खातिर ही तो रक्त बहाया
आज़ादी पाने के लिए अपना हर कटरा मिटाया
एक अजब सा नशा और जोश था उनमे
मानो किया हो मधूसला का सोपान उन्होने

अपनी ज़िम्मेदारी वे निभा गये
हमें एक सीख सीखा गये
पर आज क्यूँ सबने स्वार्थ की ओर खुद मूह मोड़ लिया
कहा खो गया है वो जज़्बा
कहते हो आम इंसान हो तूम 
वी भी तो इंसान थे,
वे भी थे प्यारे मा बाप के
प्यार से सिंचा था जिन्हे
पर आपनी परवाह कब थी उन्हे
गोली से हुए लाहुलुहान वे
कुछ जल गये कुछ दफ़नाए गये
पर मरते मरते भी वे कह गये
हम रहे या ना रहे.
हमारा वतन सलामत रहे 
हमारे देश की आन, मान, और शान बरकरार रहे
चाहे इसके लिए हम जो भी सहे

नत मस्तक सिश हमारा उन वीरो के नाम
जिन्होने किया अपना सर्वस्वा अपने देश के नाम
याद रहे ये दिए की लौ भुझहने ना पाए!!!!!!

Sunday, December 13, 2015

क्या ये इंसान है


इस बढ़ती जनसंख्या के बीच
हृदय संकीर्ण हो गया है

पहले यादों में जिया जाता था
पर अब यादें आने का समय नहीं 
क्या ये इंसान है

कोई रहा हो कृतघना तुम पर जितना भी
पर अब धन्यवाद देने का समय नहीं है
उपर से उनकी कृतघ्नता को पैसो मे तोला जाता है
क्या ये इंसान है

पहले उँची सोच से लोगों को परखते थे
पर अब उँची पदवी ही उनका चरित्रा प्रदर्शक बन गया है
धन का तो उच्च पदवी वालों के घर पे है बसेरा
निर्धन को नहीं दिखाता धन अपना चेहरा
क्या ये इंसान है

ये कैसी विडंबमा है, लोग धन के पीछे भागते है
भाई- भाई को भी ना पहचानते है'
बस धन दौलत को ही अपना सगा  मानते है 
अब कहो, क्या ये इंसान है

क्या सच में इस बढ़ती जनसंख्या के बीच
हृदय संकीर्ण हो गया है

Saturday, December 12, 2015

Why the emotions are short lived?

I saw a old man
On a street road 
Carrying a heavy load
He was struggling to walk
& I was hesitant to help or to talk


I go further...
Came across a beggar lady
Who seemed extremely needy
I cried. 
But soon my tears dried 
Looked as if my instinct lied
Wondering...Why the emotions are so short lived?
Some are noticed & some go intentionally unnoticed.

Tuesday, December 8, 2015

Dayara

जब रात में थक कर कुछ सोचती हूँ
लगता है की शायद शरीर पर सीलन सी पड़ गयी है
कुछ समय से बेरोज़गार सी पड़ी है
अपने आपको सर्कस के जोकर सा पाती हूँ
सासों में घुटन, तंग हवओ में जीती हूँ
दोष किसका कहूं, शिकायत किससे करूँ,
रोजमर्रा के बोझ  में इच्छायें दम तोड़ने लगी है
आख़िर मेरी ज़िंदगी कहा जा रही है
इन चार नपी तुली लाइनों के दायरों मे दबी जा रही है

Sunday, December 6, 2015

नोट लो वोट दो

अब नेता बनना आसान हुआ
बिन कुछ किए ही नेता महान हुआ
क्या कलयुग आ गया है
हर नेता बोल रहा है
"नोट लो वोट दो"

हर तरफ हुए प्रचलित ये नारे 
अब सब फिरते है बनने को नेता मारे- मारे 

फिर वह हो चाहे शादीशुदा या हो कवारे
या हो लालू या हो भालू
सब बन जाते महान है
क्योकि सबका नारा यही है
"नोट लो वोट दो"

नेता अनपढ़ हो, चोर हो, डाकू हो या हो मवाली
या फिर उनकी ज़बान पर रहती हो गाली
पद पाने की लालसा में हर हद पार कर डाले
दसो गूँडो को प्रचार के लिए पाले
वे भासद दे ऐसा जैसे सच्चे नेता है
पर याद रखे वे सच्चे अभिनेता है
लगे वही करेंगे हमारी और समाज की सेवा
करेंगे जन की भली तरह से सेवा
इसी मे उनके मन को मिलेगा मेवा
पर वे नेता बनाने के बाद
चल दे अपनी शतरंज की चाल
मुकर पीछे हट जाए आपने भाषण  मे दिए वादे से
नकार दे अपनी सारी बात
यह खेल है धन का
क्यूकी हर नेता बोल रहा है
"नोट लो वोट दो"

आज जो दे अच्छा भाषण सो है नेता
अब तो डर है आधी आबादी बन बैठे न नेता
देखो क्यूकी नेता बनना आसान हुआ
बिन कुछ किए ही नेता महान हुआ
तुम जो बैठे इसे पढ़ रहे हो
अब तुम भी राजनीति मे पाव धरो
नेता का पद तुम स्वीकार करो
"नोट लो वोट दो"

Thursday, December 3, 2015

ख़याल


काबू तो शरीर और दिमाग़ पे चलता है
ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती
वो तो आपने में ही दौड़ लगता है

अपने को व्यस्त कर 
जाने मैं किसे छलती थी
मैं तो स्थिर बैठी थी
पर मेरे ख़याल चारों दिशा में दौड़  लगाते थे 
लगता था आँखों ने वो लम्हा क़ैद कर लिया हो
और आज रिप्ले का बटन दबा दिया हो

अब क्या करे, यादों की तार तो दिल से जुड़ी होती है
मैं तो दिल की सुनती थी
पर ये दिल कब किसी की सुनता है

सच है काबू तो दिल और दिमाग़ पे चलता है
तो ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती