Sunday, December 13, 2015

क्या ये इंसान है


इस बढ़ती जनसंख्या के बीच
हृदय संकीर्ण हो गया है

पहले यादों में जिया जाता था
पर अब यादें आने का समय नहीं 
क्या ये इंसान है

कोई रहा हो कृतघना तुम पर जितना भी
पर अब धन्यवाद देने का समय नहीं है
उपर से उनकी कृतघ्नता को पैसो मे तोला जाता है
क्या ये इंसान है

पहले उँची सोच से लोगों को परखते थे
पर अब उँची पदवी ही उनका चरित्रा प्रदर्शक बन गया है
धन का तो उच्च पदवी वालों के घर पे है बसेरा
निर्धन को नहीं दिखाता धन अपना चेहरा
क्या ये इंसान है

ये कैसी विडंबमा है, लोग धन के पीछे भागते है
भाई- भाई को भी ना पहचानते है'
बस धन दौलत को ही अपना सगा  मानते है 
अब कहो, क्या ये इंसान है

क्या सच में इस बढ़ती जनसंख्या के बीच
हृदय संकीर्ण हो गया है

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