हृदय संकीर्ण हो गया है
पहले यादों में जिया जाता था
पर अब यादें आने का समय नहीं
क्या ये इंसान है
कोई रहा हो कृतघना तुम पर जितना भी
पर अब धन्यवाद देने का समय नहीं है
उपर से उनकी कृतघ्नता को पैसो मे तोला जाता है
क्या ये इंसान है
पहले उँची सोच से लोगों को परखते थे
पर अब उँची पदवी ही उनका चरित्रा प्रदर्शक बन गया है
धन का तो उच्च पदवी वालों के घर पे है बसेरा
निर्धन को नहीं दिखाता धन अपना चेहरा
क्या ये इंसान है
ये कैसी विडंबमा है, लोग धन के पीछे भागते है
भाई- भाई को भी ना पहचानते है'
बस धन दौलत को ही अपना सगा मानते है
अब कहो, क्या ये इंसान है
क्या सच में इस बढ़ती जनसंख्या के बीच
हृदय संकीर्ण हो गया है
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