ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती
वो तो आपने में ही दौड़ लगता है
अपने को व्यस्त कर
जाने मैं किसे छलती थी
मैं तो स्थिर बैठी थी
पर मेरे ख़याल चारों दिशा में दौड़ लगाते थे
लगता था आँखों ने वो लम्हा क़ैद कर लिया हो
और आज रिप्ले का बटन दबा दिया हो
अब क्या करे, यादों की तार तो दिल से जुड़ी होती है
मैं तो दिल की सुनती थी
पर ये दिल कब किसी की सुनता है
सच है काबू तो दिल और दिमाग़ पे चलता है
तो ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती
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