Thursday, December 3, 2015

ख़याल


काबू तो शरीर और दिमाग़ पे चलता है
ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती
वो तो आपने में ही दौड़ लगता है

अपने को व्यस्त कर 
जाने मैं किसे छलती थी
मैं तो स्थिर बैठी थी
पर मेरे ख़याल चारों दिशा में दौड़  लगाते थे 
लगता था आँखों ने वो लम्हा क़ैद कर लिया हो
और आज रिप्ले का बटन दबा दिया हो

अब क्या करे, यादों की तार तो दिल से जुड़ी होती है
मैं तो दिल की सुनती थी
पर ये दिल कब किसी की सुनता है

सच है काबू तो दिल और दिमाग़ पे चलता है
तो ख़यालो को कैसे मैं बाँध पाती

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