Underworld, Don, भाई, गुंडे, Terrorist, Naxalite सच में एक दयनीय जीवन जीते है। उनके पास पैसा खूब होता हैं, पर आज़ादी छिन जाती हैं। छुप - छुप कर जीना पड़ता है। मार काट तो जीवन का हिस्सा बन जाता है। वे हज़ारो निहत्थे आम आदमी को बिना किसी कसूर मौत की नींद सुला देते है। यही मार काट उनकी शक्ति का परिचायक बन जाता है। मरते समय वे लोंगो की आँखों में ख़ौफ़, आँसू और डर देख कर प्रसन्न होते है, उन्हें मज़ा आता है। डराना-धमकाना तो उनका आम कार्य है। इस क्षेत्र में यदि कोई कच्चे दिलवाला आ जाये तो वह उसी के बीच पीस कर रह जाता है। रोज़-रोज़ खून की नदियों को देखते -देखते एक दिन न जाने कब उसका खून भी बह जाता हैं । उनकी मृत्यु कब, कहाँ, कैसे हो जाये उन्हें नहीं पता। पर इतना ज़रूर पता है उन्हें मारना ज़रूर है। पुलिस की गोली से या अपने ही किसी भाई के हाथ से। इन सब लोंगो में यह बात सामान पायी जाती है की वैसे वे ख़ुशी से हज़ारों को गोली से उड़ा देते है और तब भी उनकी आँखों में कोई खौफ, डर या दर्द नहीं होता पर अपनी मृत्यु के समय उन्हें नाना प्रकार के डर, परिवार की याद, गलती का एहसास हो जाता है। तब वही व्यक्ति जो किसी की लाइफ की कोई कद्र नहीं करता है जिसके हांथो से हज़ारों की जिंदगी होती है (आज) एकाएक अपनी मृत्यु आने पर ज़िन्दगी की भीख मांगता है। पर आखिर में इन्हे पुलिस अपनी गोली का निशाना बना लेती है । जिसे वे encounter का नाम देते है । उनके शव का ना अंतिम संस्कार होता है ना वो दफनाए जाते है । जिनके बाद ना उनके नाम सुनाई देते है ना काम। इस मामले में पूरा दोष इनको देना गलत है। पुलिस को एनकाउंटर के अलावा कोई अलग रास्ते इख़्तियार करने चाहिए जिससे वे इन्हे पकड़ सके और सुधार सके, क्योंकि एनकाउंटर एक अप्रिय घटना है। इसमें कई बार आम इंसान भी शिकार हो जाया करते है।पर पुलिस करे तो क्या करे। ऐसे लोग समझने से समझते भी तो नहीं। उनका दिल नहीं, दिमाग नहीं, सिर्फ उनकी गोली बोलती है। उनके भाव नहीं होते बस पिस्तौल चलती है। उनमे देश प्रेम की भावना नहीं केवल पैसा बोलता है। पैसे की खातिर वो देश को भी बेंच देते है। ऐसे लोगों को क्या एक मौका भी दें उचित होगा ? ....
पर मनुष्य को कब और किसने ये अधिकार दे दिया की वह ईश्वर के रूपों को यूहीं मौत की घाट उतार देना, यूहीं उनकी जान लेले। जितनी निर्दय, क्रूरता से ये डॉन, भाई लोग मारते है। उनसे भी दो हाँथ ऊपर होती है पुलिस। जो उन्ही को उससे भी अधिक निर्दयता से गोली मार देते है। ये गोली के शहंशाह पुलिस की ही गोली खाकर अपना दम तोड़ देते है। अब आप समझ ही रहे है। हिंसा से किसी का भी कभी भला नहीं हो सकता है। यदि आप हिंसा से कुछ प्राप्त करते तो हिंसा ही उसे डूबा ले जाती है। गांधीजी भी इसे भली भांति जानते थे इसलिए तो उन्होंने अहिंसा का साथ दिया और तभी तो उन्हें कोई आपने लक्ष्य को पाने से रोक न सका और हम अब आज तक स्वतंत्र है और रहेंगे।
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