Thursday, January 28, 2016

मेरे सलोने सपने कहीं खो गये


मेरे सलोने सपने कहीं खो गये
अंधकार की काली चादर में हर गये 
अभी भोर ना हुई थी की उन्हें याद करूँ
उससे पहले ही वे खो गये

मन में उदासी का भाव भर गया
आज नही तो कल पूरे होने की आस छोड़ गया
उदासी छोड़ नया स्वप्न देखने का भी साहस किया,
पर इसके भी गुम होने की बात सोच पाव पीछे हटा लिया

दिन बीतता गया नई रात आई, नया दिन निकाला तब उसकी उदासी छ्ठी
तब उसने अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए दोबरा नये सपने बुने
पर इस बार उन सपनों का आकार बना
 सारा स्वप्न साकार हुआ

इससे उसके लड़खड़ते कदमों को, 
अनजाने ही सहारा मिला
हृदय के मुरझाए पुष्प फिर खिल उठे
उसके यह सपने उससे कभी ना रूठे
अब उसने अपना मुकाम हासिल किया
अब उसे लगा उसने अपना नसीब तय कर लिया

पर आज भी कहीं ना कहीं उसकी आँखों में अतीत का धुंधला पन्ना छलकता है
वह अपने पुराने सपने खोजती है, संजोती है और जोड़ती है
उन्हे याद कर रोती है
इस सपने ने दी कामयाबी पर
उस सपने को बुनने में मिली नाकामियाबी 
यह उसे हर पर कोसती है

वह अपने पहले स्वप्न को अपने अश्रुपूर्ण नेत्रों से धोती है
यह गम आज और कल का नहीं
जीवन प्रत्यंतर साथ ही रहेगा
वह अंत मे भी इस शोक मे ही मरेगी
कहेगी वो मेरे सलोने सपने कही खो गये 

Monday, January 25, 2016

कोयल


जब तुम आई कोयल रानी
हुए मुगद हम सुन तुम्हारी बानी
कोयल तुम अपना गीत सूनाओ
रोज तरानो की धुन बनाओ
कुहक कुहक कर हमे बुलाओ
फिर तुम अपना मधुर गीत गुनगुनाओ 

मीठे- मीठे आम खाती ही
और मीठे गीत सुनाती हो
हम सब के मन को बहलाती हो

लेकिन ये क्या?
जो गर्मी गयी
तुम भी हमारे आमो के पेड़ो चल दी
अब हम बस ये चाहे
अगले साल जल्दी गर्मी आए
तब तुम अपने बच्चों के संग फिर आओ
और मेरे पेड़ो के फल खाओ
साथ तुम्हारा संगीत हमे सूनाओ

Monday, January 11, 2016

काँच की चूड़ियो जैसी नारी की प्रतिमा



काँच की रंग बिरंगी, सतरंगी चूड़ियाँ मोह लेती है मन, जैसे नारी
कितनी कोमल होती है नारी, जैसे चूड़ी
नारी की खिलखिलाहट देख बजती है काँच की चूड़ी
नारी की असीम सपनों को दर्शाती है उसके हाथ की सतरंगी चूड़ी
काँच तपकर, गलकर आकृति पा बनती है चूड़ी
जैसे ये सभी ग़ूढ पा बनती है नारी
नारी, सतरंगी चूड़ियाँ से शोभा पाती है
सतरंगी चूड़ियाँ, नारी से शोभा पाती है
नारी के पशयताप मे जलती है, काँच की चूड़ियाँ
नारी के गर्व मे तेज चमति है काँच की चूड़ियाँ
नारी के गम मे चुटकर बिखर जाती है काँच की चूड़ियाँ
काँच पर दरार या चोट के बाद उसका कोई प्रायोजन नही
जैसे समझ ली जाती है नारी 
खंडित होने पर ज़िल्लत सहती है नारी
अपशगुन के नाम पर ताल दिया जाता है इनको, जैसे काँच की चूड़ियाँ
नारी के अरमान टूटने से बह जाते है आँखो से नीर
जैसे चूड़ी टूटने पर हाथ से खून 
काँच की चूड़ियाँ आग की भट्टी मे जा पिघल जाती है
जैसे नारी भावनाओं मे बह जाती है 
वह बाहर से कठोर पर अंदर से कोमल है जैसे ये काँच की चूड़ियाँ
खोशियूं की सौगात है
तो मातम का साधन है, 
ये रंग बिरंगी काँच की चूड़ियाँ
नारी की प्रतिमा जैसी ये काँच की चूड़ियाँ
काँच की चूड़ियो जैसी नारी की प्रतिमा

Friday, January 8, 2016

तुम याद बहुत आओगे

चले गये तुम अब 
लौट के ना आओगे 
फिर भी तुम हमे बड़ा रुलाओगे
और तुम याद बहुत आओगे

हमारे बीच फ़ासले है, दरमियाँ है
फिर भी हम दोनो के दिलों मे नज़दीकियाँ हैं 
इसी से तुम जितना भी दूर जाओगे 
फिर भी तुम याद बहुत आओगे

अब ना जाने कब किसी मोड़ पर मिलना हो'
तब तुम्हारा बदला स्वरूप देख पछताएगें 
पर ये सोच हम अपने दिल को समझाएँगे 
की कहीं ना कहीं हम भी तो बदले है
इस बदलाव में दोनो का दोष नही हैं
अब बस मुझे तुम ख्वाबों में 
याद बहुत आओगे

पराई पीर भला कौन अपनाए

आज मैने एक बच्चे को सड़क पर रोते बिलकते देखा                  
देखा! उसको उसकी मां से बिछड़ते देखा
उसके माथे पर शोक और चिंता की रेखा को मैने देखा
उसकी इतनी दुगम- दयनीय करुदात्मक दशा को भी मैने देखा

यह सब देखकर मैने सोचा
क्यूँ ना उसे मैं पालु 
उसे मैं अपने परिवार का एक हिस्सा ही बना लू...

उसके लिए मेरे आँखों से नीर बहा
मानो आज उसका दुख मैने स्वयं सहा
पर मैने ना जाने क्यू कुछ और भी सोचा
और अपने गिरे हर आँसू को पोंछा 

आज मैने जिसे रोते बीलकते देखा 
पर क्यू उसे देख कर भी कर दिया अनदेखा

आख़िर क्यू मैने अंत अपने स्वार्थ को देखा
कह दिया, यह तो था उसके भाग्या का लेखा

Wednesday, January 6, 2016

ये वीरानियाँ

वीरनियों में कुछ तो बात है
उसमे कुछ तो ख़ास है
दुखी दिल अकेले में चैन से रो  पता है
अपना गुम वही छोड़
मन हल्का कर
जिंदगी मे वापस लौट आता है
वीरनियों में कुछ तो बात है
उसमे कुछ तो ख़ास है

गम हमारा जब कोई ना समझे 
तब भी ये अकेलापन सब समझ जाता है
हसीन यांदो  का कमरा खोल जाता है
हमारे भीतर का मैं  जो जगत से अंजान है
उससे अवगत करता है
एकल होने पर भी साथ का एहसास दिलाता है
वह कभी हमे हँसता  है तो कभी रुलाता है
जिंदगी के अलग अलग खेलों  से हमारा परिचय करता है
गहरे चिंतन मे ले जाता है
और कभी बेबाकी से अपनी बात मानवाता है
वीरनियों में कुछ तो बात है
उसमे कुछ तो ख़ास है

उलझन



हर कदम तेरी ही परछाई क्यूँ 
आप्नत्व है फिर भी बेरुख़ाई क्यू
हर टूटा महल खंडहर नही होता
माना की हर रिस्ते का नाम नही होता
जो छूट गया पीछे वो बेगाना नही होता
छुपा लेने से स्नेह कभी कम नही होता

क्यूँ जिंदगी का हर फ़ैसला तुम्हे ही लेना था
मैं उड़ाना चाहती थी
तुमने टोका
मैं  खिलना चाहती थी
तुमने रोका
पर तो तुमने काट ही डाला था
फिर भी पिंजरा खुला रखने से डरते रहें
मायने बदल गये है...हम दोनों मे जीवन के 
पर एक बार मूड कर पीछे देखने मे कोई हर्ज तो नही होता

हर टूटा महल खंडहर नही होता
काश बद्रंग बादल मे फिर से रंग भर जाए 
सतरंगी इंद्रधनुष आए
ख़ुसीयों की बूँद कुछ मेरे आँगन मे भी छलक जाए
हर कदम तेरी ही परछाई क्यूँ 
आप्नत्व है फिर भी बेरुख़ाई क्यू?