Tuesday, April 28, 2015

काश दिल में यादें लिखने वाली पेंसिल का भी कोई रबर होता



काश दिल में यादें लिखने वाली
पेंसिल का भी कोई रबर होता

वक़्त बेवक़्त आती यादो को रोक पाती 
मेरे दिल का दरवाज़ा अक्सर खुलता बंद होता रहता है 
और ज़िद्दी यादों की ताका -झाँकी भी चलती ही रहती है
क्या करे दिल हज़ारों ख्वाइशें जो  करता रहता है
कभी दिनों में, कभी घण्टों में, तो कभी पलो में 
रह रह कर दस्तक दे जाती है 
ये वक़्त और जगह नहीं देखती है 
बेवक़्त ही सताती है 
कभी तो तन्हा भी छोड़  जाती हैं 
सच में, इसे बहला पाना आंसा नहीं 
इसलिए सोचती हुँ 
काश दिल में यादें लिखने वाली
पेंसिल का भी कोई रबर होता



Tuesday, April 21, 2015

उड़ान



उड़ान 
उसकी मुट्ठी से जादू का पिटारा निकला था उस दिन
मेरे सपनों का नज़ारा निकला था उस दिन
मुट्ठी हर बार की तरह खाली नहीं थी
उसमे मेरी ख्वाइशें क़ैद थी
जो आज खुल रही थी
उसने ज़रा सी ढ़ील दी और मैं हवा में उड़ गयी
चार दिवारी में बंद कमरा अब मुझे क्या रोकता
मेरे पैरों को तेज़ गति जो मिल गयी थी 


Sunday, April 19, 2015

एक छोटी सी खिड़की से कितनी दुनिया देख चूका


मैं तीसरे माले पर रहता हूँ
अपने में कुछ खोया- खोया
सब से बेखबर
अपनी छोटी सी चार दिवारी में बंद दुनिया
घर में एक छोटी सी खिड़की है
जो मुझे दूसरों से कभी कबार जोड़ देती है
बैठे- बैठे वहाँ से आते जाते लोगों को देखा करता हूँ
उनकी हँसी में अपनी हँसी खोजा करता हूँ

नाख़ून चबाता जब सामने से कोई निकले
मेरा दिल ! क्या हुआ ये जानने मन मचले
रुआँसा सा जब कोई दबे पाँव चला जाता है
मेरी जिज्ञासा भी बढ़ा जाता है
सोचता हूँ, पूंछूं क्या हुआ ?
पर तहज़ीब का दायरा याद आ जाता हैं

बॉल लिए जब कोई अपनी धुन में चला जाता हैं
कभी गेंद आकाश में उछाले, तो कभी ज़मीन पर
कभी उँगलियों पर रखकर  करतब दिखाता
उसे देख मझे मेरा बचपन याद आता

सर्दी के मौसम में, मैं कोट पे कोट डाले बैठता हूँ
तो खिड़की के बाहर बिखारी को मैं नंगे बदन सुकड़ता सा पता हूँ
तब अपने शरीर पर स्वेटर और ओवरकोट के अंदर भी
शरीर पर उठे काँटों के अहसास से सिहर सा जाता हूँ

जब चार कंधे शव को गली से ले जाते
तो उसके परिजन का शोक देख मेरे आँखों में आँसूं छलक आते

मैं इस खिड़की पर लटका देखता हूँ हज़ारों नज़रें
हज़ारों चेहरे, कोई नाचता, कोई गाता, कोई रोता और कोई मुस्कुराता
कितनी अलग है ये दुनियाँ 
खिड़की के अन्दर एक दुनियाँ
खिड़की के बाहर अनेकों दुनियाँ

Saturday, April 18, 2015

चोरी

चोरी करना कला नहीं, मजबूरी है
उस बेबस बाप की, जिसका बेटा भूख से तिलमिला रहा है
उस बीवी की, जिसका पति शराब में धुत किसी कोने में पड़ा है
उस मासूम बच्चे की, जिसे अब तक उसका मन पसंद खिलौना नहीं मिला
उस माँ की,  जो अपने परिवार को खुश देखना चाहती है
ग़लत वो नही, ग़लत तो हालत है





Tuesday, April 14, 2015

Short Cut

शॉर्टकट

साधारण मार्ग से सब है अंजान
रहती है शॉर्टकट की सबको  तलास
Cheating कर exam में  आते है first 
Practical result हो जाता है worst

शॉर्टकट के प्रचलन ने लाई जीवन में कितनी complications
अब SMS का ज़माना है 
तो briefing को हमें निभाना है 
अब शॉर्टकट सर चढ़कर बोल रहा है 
पिताजी को अब पा सारी दुनिया बोल रहा है 

जब बच्चे ने एक important  बात का जिक्र बाप से करना चाहा 
पिता बोले "flight का time हो रहा है 
ज़रा शार्ट में बताना "
बेटा बोला, ठीक है ज़रा 4000 का नोट तो पकड़ना
पिता ने कहा how rude 
बेटा बोला Daddy I was going according to your mood
कल मेरा जन्मदिन है दोस्तों को पार्टी है देनी
बाप बोला मिल जाएंगे, ऐसे पहले क्यों नहीं बताया 
पर Daddy मैंने तो बस आपका समय बचाया 

आखिर क्यों?
कुछ पल के परिश्रम से घबराकर 
लोग शॉर्टकट को अपनाते है
देखो स्वयं ही मुसीबत से घिर जाते है 
शार्टकट सारी  अच्छी बातों को करता है कट 
फिर भी सब बोले 
Long route ही क्यों 
"Lets take the shortcut"

Sunday, April 5, 2015

Ghazal



माना की मसले बहुत है दुनिया में 
और ये रिस्ते भी कम संजीदा ऩही
पर क्या ज़िंदगी अब इतनी भी मयस्सर नहीं 
की सुकून के कुछ लम्हे गुज़ार ले...

सुना है, ग़मों से रूबरू होते ही 
शकशियत  में और निखार आ जाता है 
लो ये भी कर लिया 
पर अब भी कुछ नहीं बदला 
न फ़ज़ाए बदली 
ना ये नज़ारे बदले 
गीले भी है, शिकवे भी है 
और खड़े सब मसले भी है 
शायद ये ही ज़िन्दगी है और शायद नहीं भी है