Tuesday, November 24, 2015

महफूज़



आज आतंक का कोहरा छाया है
हर तरफ दिलो में भड़कती ज्वाला है
जिनमे न वे अपना अस्तित्व बचाते है
परन्तु अन्यों को भी मिटाते है
अब रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |
 
आज आतंक की जड़े चारो ओर सुलगी है
जिसमे पीड़ित हो कई माये अपने बच्चो के लिए रोई है
आँखों में दर्द और डर समाया है
प्रेम का भाव मनुष्य कही दफ़ना आया है
अब रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |
 
हर तरफ लाचारी, बेबसी ने हाथ बढ़ाया है
आतंकवाद ने अपना झंडा फहराया है
हर तरफ आग की लपते है
अब तो पेड़ के तले भी ना छाया है
अब रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |
 
हाय रे, अब भी समय है
इए समस्या से लड़ना होगा
और इस पर विजय पा इसे जड़ करना होगा
अरे! देखो कही देर न हो
यह घुल न जाये पूरे विश्व में विष की तरह
इससे पहले ही कुछ कर गुज़रना होगा
इस आतंकवाद को हमें मिलकर मिटाना होगा
जिसके कारण रहा न किसी कोने में कोई महफूज़ |

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