Monday, December 14, 2015

दिए की लौ भुझहने ना पाए

एक वक़्त था, जब घोर अंधकार से साना था अपना देश
स्वतंत्रता तो रह गयी थी नाम मात्र सेश
तब एक नही, लाखो बढ़कर आगे आए
अँगरेजो पर काल की तरह मंडराए
फिरंगी को हटाने का उत्साह सबके मंन को भाए
हर कोई आज़ाद मशाल ले आए 
याद करो उन लोगों की
देश के वीर जवानों की
कुछ सालो पहले ही तो
कुछ सालो पहले ही तो 
देखा था हमने कुछ जोश नया
थी उनमे कोई बात नयी
उनके तो रग- रग मे देश प्रेम था समाया
उन्होने स्वदेश की खातिर ही तो रक्त बहाया
आज़ादी पाने के लिए अपना हर कटरा मिटाया
एक अजब सा नशा और जोश था उनमे
मानो किया हो मधूसला का सोपान उन्होने

अपनी ज़िम्मेदारी वे निभा गये
हमें एक सीख सीखा गये
पर आज क्यूँ सबने स्वार्थ की ओर खुद मूह मोड़ लिया
कहा खो गया है वो जज़्बा
कहते हो आम इंसान हो तूम 
वी भी तो इंसान थे,
वे भी थे प्यारे मा बाप के
प्यार से सिंचा था जिन्हे
पर आपनी परवाह कब थी उन्हे
गोली से हुए लाहुलुहान वे
कुछ जल गये कुछ दफ़नाए गये
पर मरते मरते भी वे कह गये
हम रहे या ना रहे.
हमारा वतन सलामत रहे 
हमारे देश की आन, मान, और शान बरकरार रहे
चाहे इसके लिए हम जो भी सहे

नत मस्तक सिश हमारा उन वीरो के नाम
जिन्होने किया अपना सर्वस्वा अपने देश के नाम
याद रहे ये दिए की लौ भुझहने ना पाए!!!!!!

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