Tuesday, April 21, 2015

उड़ान



उड़ान 
उसकी मुट्ठी से जादू का पिटारा निकला था उस दिन
मेरे सपनों का नज़ारा निकला था उस दिन
मुट्ठी हर बार की तरह खाली नहीं थी
उसमे मेरी ख्वाइशें क़ैद थी
जो आज खुल रही थी
उसने ज़रा सी ढ़ील दी और मैं हवा में उड़ गयी
चार दिवारी में बंद कमरा अब मुझे क्या रोकता
मेरे पैरों को तेज़ गति जो मिल गयी थी 


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