उड़ान
उसकी मुट्ठी से जादू का पिटारा निकला था उस दिन
मेरे सपनों का नज़ारा निकला था उस दिन
मुट्ठी हर बार की तरह खाली नहीं थी
उसमे मेरी ख्वाइशें क़ैद थी
जो आज खुल रही थी
उसने ज़रा सी ढ़ील दी और मैं हवा में उड़ गयी
चार दिवारी में बंद कमरा अब मुझे क्या रोकता
मेरे पैरों को तेज़ गति जो मिल गयी थी
No comments:
Post a Comment