काश दिल में यादें लिखने वाली
पेंसिल का भी कोई रबर होता
वक़्त बेवक़्त आती यादो को रोक पाती
मेरे दिल का दरवाज़ा अक्सर खुलता बंद होता रहता है
कभी दिनों में, कभी घण्टों में, तो कभी पलो में
रह रह कर दस्तक दे जाती है
ये वक़्त और जगह नहीं देखती है
बेवक़्त ही सताती है
कभी तो तन्हा भी छोड़ जाती हैं
सच में, इसे बहला पाना आंसा नहीं
इसलिए सोचती हुँ
काश दिल में यादें लिखने वाली
पेंसिल का भी कोई रबर होता
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