Wednesday, November 23, 2016

पुरानी और नयी यादें

कुछ पुरानी यादों को तबाह किया है
नयी यादों की जगह जो बनानी है

कुछ रिस्तो को बेनाम किया है
अब नये रिस्ते जो निभाने है
कुछ बातें बस भूल गये है
नयी बातें जो कहनी है
कई बीते लम्हों को मिटाया है
कुछ और हसीन लम्हे जो गुज़ारने है
कुछ लोंगों को पीछे छोड़ा है
क्यूकी हमें आगे बढ़ना पड़ा है

सब आहिस्ता-आहिस्ता ही सही, असर तो हो रहा है
कुछ बदल रहा है और कुछ मैं बदल रही हूँ
कई पुरानी यादों को तबाह किया है
तभी तो नयी यादों की जगह बना पाई हूँ

Thursday, November 10, 2016

जंगली फूल

सिर्फ़ लाल गुलाब, गुलाबी कमल का फूल ही खूबसूरत नही होता I  कई बार जंगल में उगते रंग बिरंगे फूलों की वल्लरियाँ भी अति सुंदर होती है I कहने के लिए उनमें ख़ुशबू कम होती है पर इससे उनकी सुंदरता में कोई कमी नहीं आती I उन्हे संभालने या देखने की कोई ज़रूरी नही I जंगली फूल आपकी कल्पना की तरह ही होते हैI कभी भी कहीं भी पनप जाते हैI उनमें विकास की कोई सीमा नही होती I बस बढ़ती जाती है जैसे इंसान की imagination की कोई limit नहीं I कई बार इन जंगली फूलों से ईर्ष्या हो जाती  है, क्यूकी हमें तो इतनी रोक-टोक है और ये जंगली फूलों को किसी बात की कोई परवाह ही नहीं I जहाँ मन हुआ उस ओर हो गयी I बिल्कुल मनमौजी होती है  I


Saturday, October 29, 2016

रुके रुके से ख्वाब

कुछ रुके रुके से ख्वाब है
और कुछ ख्वाब की तलाश है

सबको ज़िंदगी बना मुस्कुराते है
शायद अब भी सच्ची मुस्कान की तलाश है 
हम मीलों का सफर तय कर चुके है 
और आगे भी मंज़िल की तलाश है 

कुछ रुके रुके से ख्वाब है
और कुछ ख्वाब की तलाश है

Saturday, October 8, 2016

ज़िंदगी परियो की कोई कहानी नही है
ज़िंदगी में तो बड़े उतार चढ़ाव होते है
 मुकाम पाने से पहले कई पढ़ाव होते है

*****

उसने कहा मैने सुना
मैने कहा उसने सुना
दोनो ने ना कोई सवाल किया 
ना तो कोई जवाब ही आया
और सब वैसा ही चलता गया

*****

प्यार तो एक एहसास है
दो लोंगों के बीच का अटूट विश्वास है
जाने क्यू फिर प्यार कई बार बनती बिसात है
कभी इसमे मिलती शय तो कभी मात है

*****

वो जताना भूल आए है
हम बहाना भूल आए है
बिन बोले ही 
सारा ज़माना भूल आए है

*****

सम्राट चक्रवर्ती अशोका



सम्राट चक्रवर्ती अशोका दोबारा धरती पर है आयें
अपने साथ कई expectations है लायें
सब कुछ Mordern होगया है
मानो उनका साम्राज्य किसी और के आधीन हो गया है
जब अचानक आस पास सब इतना अटपटा देखा
जिग्यासा वश उन्होने पूछा
क्या ये मगध राज्या है
बगल में खड़ा बच्चा बोला
लगता है तुम्हारे साथ घटी कोई घटना है
क्यूकी ये तो पटना है
राजा थे दंग
पूछा क्या मै चल सकता हूँ तुम्हारे संग
चलते चलते वो बोले
कुछ अपने मन के राज़ खोले
क्या तुम्हे इस बात की है खबर
इतिहास में मेरा नाम है अमर
मैं हू मौर्या सम्राट अशोक
ओह ! आप तो फिर काफ़ी प्रचलित है इस लोक
हमें भी ये ज्ञात है
आप कितने विकयात है
बचपन में कई बार loose  किया था अपना Temper
शायद आपके पास नही था सही Mentor
आप तो बचपन में ही अपनी शख़्सियत गये थे हार
बन बैठे थे चाणक्य  की कटु नीति का शिकार
कितनी प्रबल थी राजगद्दी की मंशा
बिना सोचे समझे बस करते रहे हिंसा
परिजनो का बहाया था रक्त
इसके अतिरिक्त आपके पास था किसी और बात का वक्त
तुमने ही तो किया था कॅलिंग युध
सब पाकर बन गये थे बुध
राजा ने ये सब सुन आँखें बिचकाई
तुम यूँ ना दो मुझे दुहाई
क्या तुम्हे मेरे बारे में बस इतना पता हैं
मैने अपने 40 वर्ष के शासन में और भी बहुत कुछ किया है
कॅलिंग युध के बाद ही तो मुझे मेरी ग़लती का आभास हुआ था
मैं मानो जीते जी ज़िंदा लाश हुआ था
कितनी दर्दनाक वो स्थिति थी
रन भूमि पर लाखों सैनिको की लाश बिछी थी
तब मैने हिंसा को था त्यागा
इतने सालों में मानो मैं तब था जगा
बना मैं बोधिसत्व
समझाया सबको बुध धर्म का महत्व
मेरे साम्राज्या का विस्तार लगभग पूरा भारत और ईरान था
मुझे सफल और कुशल सम्राट बनाने में आचार्य चाणक्य का ही हाथ था
मैने बनाया था विहार और स्टुप
मैने कर्तव्या निभाने में कभी की नही है की चूक
मैने रोग से पीड़ित प्रजा के लिया बनाया था चिकित्सालय
तक्षशिला और नालंदा में बनाया था विश्वविद्यालय 
मैने शिलालेखों द्वारा जनता को शांति से जीना बताया था
सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि जानवरों और पेड़-पौधों के हित के बारे में भी सुझाया था

मैं आज भी तुम्हारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग हूँ
जो मरकर भी आज तुम्हारें संग हूँ
अशोक चिन्ह है तुम्हारा राजकीय प्रतीक
अहिंसा, सदभाव, प्रेम और सत्य की मैने रखी थी लीग

बच्चा ये सब सुन रहा था
अपने दिमाग़ में कुछ बुन रहा था
This is 21st Century
And sorry for not being aware about your glory
आपसे मिलकर अच्छा लगा है
शायद आज कोई इतना सच्चा लगा है
हर इंसान के दो पहलू होते है
वो कभी ग़लत तो कभी सही होते है
हमारे धवज के बीच जो अशोक चक्र लहराता है
आज भी अमन और शांति का परचम फहराता है

आज नही तो कभी नही

“आज नही तो कभी नही” गौर करने वाली बात है I ये चाहे किसी भी संदर्भ में क्यूँ ना हो   I एक ऐसा ही मौका मैं छोड़ आई हूँ  I जानती हूँ मौके बार –बार नही मिलते  I पर जब मौका छूट गया हैं तो अब पाना किसे है I उसकी परवाह किसे हैं I भूल जाओ और आगे बढ़ो I

**********************************

आज अपनी ही बात को काटती हूँ  I मौके तो हज़ारों मिलते है पर व्यक्ति के आतमविश्वास की कमी या समाज के डर के कारण उसे ठुकरा देता है I मौके हर कदम पर आपके कदम से कदम मिलनें की बात करतें हैं पर यदि आपके कदम लड़खड़ा जाए या कोई अलग राह खोज़लें तो भला मौका क्या करेगा I उसे तो आपके रास्ते से हटाना ही पड़ेगा I 

Sunday, July 31, 2016

Traffic का red signal


दिन भर के सफ़र में 
स्कूटी, कार और बस में 
Traffic के  red signal से
रोजाना रूबरू होते है
इसकी मेहरबानी से
5 तो कभी 15 मिनट हर रोज़ लेट होते है

सिग्नल पर भीख माँगने की कला बदल रही है
शायद ये कला तकनीक से जा मिल रही है 
कई खुद्दार ग़रीब और बिखारी
कर रहे है नया काम जारी

बरसात में लातें है सतरंगी छाता
गर्मी में इन्की पोटली से cap  है निकल आता
कभी होता है पेन और कभी पेन्सिल
कभी छोटे से खिलौने 
तो कभी ढेरों गुब्बारें
गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस को ये बेचते है झंडा
ये रोज़गार है या है कोई धन्दा

signal पर वस्तु विक्रय संगठित व्यवसाय हो गया है
अनपढ़ के लिए product marketing का हुनर आम हो गया है
हर तीन महीनों में चीज़े है बदलती
signal  पे बेचने का काम है बड़ा मेहनती

जिसकी नही रहती कभी कोई guarantee 


अपमान भला किसे है भाता
शायद इन्हे सिर्फ़ यही काम है आता
ये Traffic का red signal
जो मचाता है कई बार घमासान हलचल 



Monday, July 18, 2016

आज शायद बात कुछ और है

आज शायद बात कुछ और है...


उनके आने की खबर नही
उनसे मिलने का सब्र नही
बातें नही हुई है अब तक
फिर भी मुरीद हो गया है


शर्तें नही है
बस मनमानी चल रही है
कुछ लोगों की देखा देखी
कई आदतें बदल रही है
आज शायद बात कुछ और है!

Monday, June 20, 2016

शायर की क़लम

शायर की क़लम ही 
अपनी नज़्म का जादू 
दुनिया पर चलाती है
ये हुनर हर किसी के बस की बात नहीं
कई बार आर्सो लग जाते है एक छोटी सी बात को
तो कभी चन्द लम्हे भी आर्सो की कहानी बया करते है

शायद मंज़र बहुत है
नज़रें कई है
चाहने वालो में मक़बूलियत की कतारें बहुत है

उनके शब्दो का जादू कुछ ऐसा है
वो दिन को भी करदे निशा के जैसा है

हसते-हसते इतनी तीखी बात करते हो 
ज़िंदगी की बनावट पर कितने इल्ज़ाम कसते हो

शायर की कलम ही 
अपनी नज़्म का जादू 
दुनिया पर चलती है
ये हुनर हर किसी के बस की बात नही

चार लकीर पर दुनिया को नापने चले 
सुहाने मौसम में भी तुम गरदिश में धुँआ उड़ाते चले 

कभी तकदीर, कभी ताबीर 
कभी तस्वीर, कभी तस्वूर 
सबको अपनी रवानी मे समेट लेते हो तुम
शायर हो ! शायरी से परिंदो तक का दिल जीत लेते हो तुम 

Thursday, May 19, 2016

आँखे भी camera सा काम करती है.........



आँखे भी camera सा काम करती है
रंगीन यादों को बड़े प्यार से capture करती है
आँखो के हिसाब से अपनी लेंस को adjust करती है 
अपनी convinience पर zoom in and zoom out करती है 
मनचाही पिक्चर को करती है click
फिर पल भर की देर मे करती है store 
बस इशारे भर से खींचती है अपनी ओर  
आँखें तो है दिल तक पहुचने का है एक single door 
ये तो हमेशा ही रहती है autofocus or colour balanced 
सब मिंटो मे हो जाता है save और recorded 
कैमरे से बढ़ियाँ है आँखो का Pixel
इसका funda है बिल्कुल simple
Eye's need no charger
They try to make life, little too larger
शायद आँखे कभी-कभी camera से भी बढ़ियाँ काम करती है
रंगीन यादों को बड़े प्यार से capture करती है

मेरे साथी साथ चलना

जीवन बहुत बड़ा है साथी
हर दिन एक समान नही
कुछ दिन सुख के है आयें
तो कुछ दिन दुख के भी आएँगें
 
जब मैं सुखी हूँ
मेरी रातें चाँदनी है
जब लगता सब प्यारा –प्यारा है
तब कई गिद्द मेरे आगे पीछे मंडराएँगे
मेरे लिए, तो कभी मेरे संग, नाचेंगे गाएँगे
पर तब भी मेरे साथी, गुम ना होना
इन गिद्दो के बीच तुम ना खोना
मेरी दोस्ती याद रखना
साथी मेरे साथ चलना
क्यूकी बाकी सब स्वार्थ के लोभी है
 
कभी जो गयी मेरे नसीब की काया पलट
ये सारे गिद्द मौका पा उड़ जाएँगे
रह जाऊंगी मैं अकेली संघर्ष करती, लड़खड़ाती
तब तुम मेरी बाह थाम लेना
तुम मेरे साथी साथ चलना
याद दोबना ये दिलाना
तुम मेरे सुख- दुख के साथी हो
 
मेरे साथी साथ चलना
क्यूकी हर सुनहरी शाम के बाद
आता है घोर अंधेरा
लेकिन तुम यह मत भूलो
हर नया दिन एक नयी सुबह लाता है
वह फिर अंधकार हर लेता है
और फैलता है उजियारा
यह जीवन का एक क्रम है
जिसमे सुख दुख दोनो
बारी- बारी आता और जाता है
जीवन के कई खेल दिखता है
पर जो मित्र दोनो में साथ निभाता है
सच्चा और अच्छा दोस्त कहलाता है

Monday, May 9, 2016

वो कैसे दिन थे…. ये कैसा दिन आया है

तब देखा था राम सा नर, सीता सी नारी
अब हो गयी है ये बात पुरानी
दोनो पड रहे है एक दूसरे पर भारी
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब लक्ष्मण के भात्रप्रेम ने
राम के साथ वनवास जाना मंजूर किया था
आज अंबानी भाई एक दूसरे को देखने को तैयार नही
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब द्रौपदी की लाज की रक्षा को श्री कृष्णा स्वयं आए थे
यहा दामिनी, निर्भया आख़िर तक अकेले ही लड़ती रही 
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

इतिहास ने कभी हरिशचंद को देखा था
अब वह नेता भी देख लिया
जो हर दिन झूठे वादें बाँटता है
अपने से अपनी बात काटता है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब मुगल राजा अकबर ने सब धर्मो का मे दीन-ए-इलाही को अपनाया था
अब बाबरी मसजिद को ले, मज़हब में हर साल झगड़े हो रहे है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब भगत सिंग ने भारत की आज़ादी को अपनी दुल्हन बताया था
अब हर नुकड पर दिखता अलग नज़ारा है
कम्यूनिस्ट, माओवादी ने बड़े शान से अपना झंडा फहराया है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब गांधीजी ने अहिंसा, देश को बचाने के लिए अपनाई थी
अब हिंसा देश को मिटाने को तैयार है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब श्रवण कुमार सा आदर्श बेटा था 
अब डॉक्टर तलवार से मा बाप भी देख लिया
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब लोग सौ-सौ साल जिया करते थे 
अब तो कल का भी पता नही 
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

मैं ये नहीं कहती कल की हर बात भली और आज की हर बात बुरी हैं 

पर बीच का फासला ज़रा गहरा हैं 
सच में वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

Sunday, May 1, 2016

एक रुपये के सिक्के का मोल.....




कभी गये कौड़ियो के मोल
कभी हो गये अनमोल

ग़रीबों के लिए वरदान हो तुम
अमीरों द्वारा दिया दान हो तुम
कभी किसी ने तुम्हे निर्धन की झोली मे डाला 
कभी शुभ समझ कर एन्वेलप मे डाला

कभी 9, 99 तो कभी 999 ऑफर की लालच दे ग्राहक को लुभाया है
कभी तुम्हे ट्रेन की पटरी पर रख अपना करतब दिखाया है

काम तुम कितना आते हो
दूरी भी घटाते हो
कभी STD के कॉल बूथ पर
तो कभी स्टेशन पर रखी Weighing मशीन पर
एक रुपये मे वजन के साथ भविष्य भी बताते हो 
कुछ ही लम्हो मे बोरियत तुम भगाते हो
रंग बिरंगी चॉक्लेट के मज़े भी दिलाते हो

ये है एक रुपये का मोल
जिसका आकार है गोल 
हर दिन एक एक रुपये जोड़कर गुल्लक मे भरते जाओ
ऐसे ही तुम अपनी जमापूंजी को और बढ़ाओ

Thursday, April 14, 2016

पत्थर की इमारत


इन विशालकाय पत्थर की इमारतों की अपनी एक कहानी है
कभी कोई सुनता इसे किसी की ज़बानी है
तो कभी रह जाती ये बेगानी है
इनमे दबा इतहास का कोई पन्ना है
कुछ भरा हुआ तो कुछ भरना है
कहीं महल, कही स्मारक तो कही मीनार खड़ी है
मानो वक़्त ने प्यार से थामी कोई घड़ी है
युगों -युगों से कई पीढ़ियों की परंपरा यहा पनपी होगी
कई कहानिया मिटी और जन्मी होगी

जो आज भी वर्तमान  को भूतकाल से जोड़ रहा है
राज़ कई ये खोल रहा है 
इन विशालकाय पत्थर की इमारतों की अपनी एक कहानी है
कभी कोई सुनता इसे किसी की ज़बानी है
तो कभी रह जाती ये बेगानी है

Tuesday, April 12, 2016

ख्वाबों की दुनिया

बड़ी खुश थी मै अपनी ख्वाबों की दुनिया में
मन की हर इच्छा पूरी होती थी
लंबी मुस्कान लिए मै दिन भर सोती थी
ख्वाब में मैने अपना एक आशियाँ बनाया था
जहाँ हर सुख, सुविधा और आराम था
यह यक़ीनन मेरा एक बेहतरीन ख्वाब था

बड़ी खुश थी मै अपनी ख्वाबों की दुनिया में
की यह भूल गयी ख्वाब कुछ पलों के लिए आते है
जो इस जागती दुनियाँ में अकेला छोड़ जाते है
ख़्वाबो से परे, इस दुनिया में मेरा वो आशियाँ ना दिखता था
यहा तो सिर्फ़ दुख-दर्द मेरे इर्द गिर्द लिपटा सा दिखता था

बड़ी खुश थी मै अपनी ख्वाबों की दुनिया में
शायद इसी कारण रोक ना सकी वो हवाओं के झोके
जिसने मेरे ख्वाबों का रुख़ मोड़ दिया
बीच मजधार मुझे अकेला सा छोड़ दिया
हिम्मत ना हुई की किनारे को छू लू
डर था भेट ना हो जाए किसी नयी मुसीबत से
यह सब सोच कर भी मै वहा ठहर ना सकी
क्यूकी तेज़ थी जल की गति
और मै उसके संग ही बहती गयी
सफल ना हुई मेरी कोई चाहत
ये मेरी ही भूल थी
क्यूकी बड़ी खुश थी मै अपनी ख्वाबों की दुनिया में
की रोक ना सकी वो भयावह लहरें
जो कर रहा था ध्वस्त मेरे ख्वाब को
शायद ये आधा सच है
क्यूकी ख्वाब कुछ नही
बस एक इच्छा  और तमन्ना है
जिसे जागती आँखो से पूरा करना है
अब जब ये बात समझ में आई है
तो इसने एक नयी उमीद सी जगाई है
अब मेरा आशियाँ दोबारा बनेगा
हक़ीकत की नीव पे पूरा सजेगा

Thursday, March 24, 2016

गम का बाज़ार

गम क्या बाज़ार में मिलता है
जो आँखें बार - बार नम हो जाती है
कभी किसी की याद बनकर
कभी अकेली रात बनकर
कभी होंठों तक ना आ सकी, वो बात बनकर
कभी जुदाई के डर का एहसास बनकर

गम क्या बाज़ार में मिलता है
जो आँखें बार - बार नम हो जाती है
लब पर ये जबरन मुस्कान भी
दिल का हाल कब छुपाती है
ये रोक ना पायें खुद को तो,
आँखों से नीर बहाती है
कभी किसी गैर की तड़प देखकर
कभी खुशियों की अपार सीमा छू लेने पर
कभी जीवन की नाकामयाबी पर
तो कभी किसी की कड़वी बात सुनकर
सुख हो या हो दुख!
आँसू ये छलकाती है
दर्द के सभी रिस्ते ये बखूब  ही निभाती है

शायद! गम बाज़ार में मिलता है
जो आँखें बार - बार नम हो जाती है

Sunday, March 20, 2016

डगर की ख़ोज



अपनी डगर की ख़ोज में
राहें हम बदलतें रहे
कभी गिरें तो कभी हम सभलते रहे
वक्त तो चलता रहा अपनी चाल
दिन हुए महीने, तो महीने साल में बदलतें रहें
शायद ये जीवन रूपी जंजीर,
हमे अपनी बाहों मे जकड़ते रहे
हम कभी उलझते, तो कभी सुलझते रहे
अपनी डगर की ख़ोज में
राहें हम बदलतें रहे


दिन का इंतज़ार

दिन का बेसब्री से इंतज़ार है हमे
पर ये रात है जो ढलती नही
बहुत हुई अमावस्या की काली परछाई
अब पूर्णिमा सी चाँदनी चाहिए
दो पल को खुशियों की जिंदगानी चाहिए
नया दिन देखने को मेरा दिल मचल रहा हैं
मेरा मन मुझसे अब ना संभाल रहा है

आह! कमरे में कितना अंधेरा समाया हैं
बस चाँद थोड़ी सी रोशनी बिखेरे है नभ में
हाल मेरा देख मंद-मंद मुस्कुरहा रहा हैं
पर नींद है की आती नही हैं
मीठे सपनों  में सुलाती नहीं हैं
शबनम की ओस क्यू पिघलती नहीं हैं 
ये नामी जाएगी कैसे
नींद मुझे आएगी कैसे
इच्छायें पर फैलाए उड़ना चाहती है
पर इस बात से अंजान सूरज, बेख़बर सोया हैं
मन मेरा ख़यालों की गुथियो में उलझा है
कभी पुरानी बातों में घूम आता
कभी भविष्य की अनदेखी सीमा को छू आता
सुंदर सपना आज मुझे कितना लुभाता 
आनेवाले कल की कल्पना इतनी मधुर होगी, सोचा नहीं था
हर दुख से उपर उठ जाओंगी ये भी जाना ना था

बरगद के पेड़ पे किया निशान अब धुँधला गया है
मुझमे अब भी गमों की यादे तो है समाई
पर पहले की तरह अब उनमे वो दर्द नही
दिन का बेसब्री से इंतज़ार है हमे
पर ये रात है जो ढलती नही!!

Tuesday, March 8, 2016

गुनाह



अब तक ज़मा था किसी कोने में 
परत दरपरत बढ़ता जा रहा था
जमाने से कैसे मिलता वो 
कॅकून सा छुपा बैठा था वो

इतनी गर्त में सच्चाई कौन देख पाता
उसकी नज़रें जब औरो की नज़रों से ना मिलती थी
तो ये बीच की जमी बर्फ कैसे पिघलती??



Saturday, March 5, 2016

छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है



कभी रंग बिरंगे गुब्बाओं को आकाश मे उड़ते देखना
कभी किसी पिंजरे मे बंद पंछी को गगन मे खुला छोड़ना
रात मे टेरेस पर लेट कर चाँद तारों को निहारना
किसी बच्चे का ख़ुसी से खिलखिलाना
इन छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है
बस ऐसे ही लम्हो से ये महफ़िल सजती है

किसी ग़रीब को खाना खिलाना
किसी अंधे को रोड क्रॉस करना 
कई बार अपनी बात को बिना तर्क , ज़िद्द से मनवाना
अपने बचपन के क़िस्से बड़े चाव से सुनाना
बिन मौसम की बारिश मे भीग जाना
सर्दी की रात मे आइस-क्रीम खाना
इन छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है
बस ऐसे ही लम्हो से ये महफ़िल सजती है

मा की गोद मे सर रख कर सोना
किसी की आँखों मे तुम्हारे लिए आपार स्नेह का होना
पूरी रात बस किसी की याद मे गुज़ार देना
कोई अच्छी नज़्म या ग़ज़ल पढ़ना
मंदिर मे बैठ कर आपार शांति का अनुभव करना
दोस्तो के संग बैठ हँसी ठिठोली करना 
सबको भूल! बस अपने मंन की करना 
इन छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है
बस ऐसे ही लम्हो से ये महफ़िल सजती है

Wednesday, March 2, 2016

काश

काश! उमीद का है कारोबार
किसी पे करता नही ये ऐतबार
इसने सबको कस्माकश मे डाला है
पिरोइ कच्चे धागों की माला है

ये काश शब्द कितना पेचीदा है
कितनी ही संभावनाए लाकर रख देता है सामने
इंसान को अपने ही किए पर अफ़सोस दिलाता है
अपनों के ही खिलाफ ये ले जाता है

काश! सबको दावा सा करता 
अपनी ही कहानी सुनता है
घूम फिर के ये बीती बात दोहराता है...
मेरी ज़िंदगी और बेहतर होती तो अच्छा था..
कहता है 
काश ऐसा ना होता
काश कुछ वैसा होता
ये काश शब्द सच मे कितना पेचीदा है

Thursday, February 25, 2016

ये रात मुझसे बात करती है



ये रात मुझसे बात करती है
कभी मुझसे कुछ सवाल करती है

वो पूछती है मुझसे 
मेरी मंज़िल है क्या?
मै कैसे कह दू
मैने जो अब तक तय ही नही किया
ना जानू जाना कहा

सर्घोषी से आई थी
और कानो में गूँज कर चल दी
ये रात मुझसे बात करती है
कभी मुझसे कुछ सवाल करती है

मै चुप हू और अब ये रात भी मौन देखती मुझको
मैने आँखे चुरा ली है
पर अब भी वो यही दूर खड़ी घुरती मुझको
ये रात मुझसे बात करती है
कभी मुझसे कुछ सवाल करती है

Sunday, February 14, 2016

इतने भोले नही हम

कभी नटखट, कभी शैतान
कभी भोली, कभी नादान
कभी सच्ची, कभी झूठी
कभी हँसी, कभी रूठी
मेरे दिन कुछ ऐसे गुज़रते है
ये रोज़ के प्यारे पल मेरी आँखो में ठहरते है

पर इतने भोले नही हम
तुम देखकर अनदेखा कर दो
और हम फिर भी मुस्कुराते रहे

तुम अपनी कहो और मेरी ना सुनो
फिर भी हम तुम्हारी सुनते रहे
इतने भोले नही हम

तुम मेरे सपनो का मज़ाक बनाओ
और मै चुप रहूं
इतने भोले नही हम

सब समझ कर भी
ना समझ बने रहे
इतने भोले नही हम

तुम से हो खफा
और तुम्हे इत्तेला भी ना करे
इतने भोले नही हम

आपकी आँखे कुछ और ज़ुबान कुछ कहती है
इतने भोले नही
के ये भी ना समझ सके
हाँ इतने ज़रूर है
की इंतज़ार करेंगे
जब तुम्हारे लब और आँखे एक ही बात मुझसे कहेंगी

इतने भोले नही हम
हर बात भूलकर माफ़ करदे
पर इतने ज़रूर है के
दूसरा मौका देदे

चाहते है के आप हमारी आँखे पढ़ लो
क्यूकी इतने भोले नही हम
की मेरे हाल की इततेल्ला सही से पहुचा दे तुम तक

Wednesday, February 10, 2016

मिट्टी का पुतला

हर व्यक्ति मिट्टी का एक पुतला है
जिससे निर्मित, उसमे विलीन
ईश्वर की अदभुद, अनोखी कला है

पर बिना कुछ किए जीरहे तो क्या जिए
और बिना कुछ किए मर गये तो क्या मरे

इससे नही मिलेगा अमृतव तुम्हें
ना ही होगी जय-जयकार तुम्हारी 
चाहत हो सम्मान की तो 
तुम सब आगे बढ़ कर आओ
देश की उन्नति के लिए हाथ मिलाओ 
तुम्हे इंसान का जीवन मिला है
इसे तुम व्यर्थ ना गवाओ
अपना व्यवहार कटु से नम्र बनाओं
घुलो, गालो, तपो और जल जाओं
दूसरों को मॅन से अपनाओं
चोट चाहे तुम खुद खाओ
पर औरो को ना तुम दर्द पहुचाओं
जग में हो नाम तुम्हारा  
ऐसा कोई कार्य तुम कर जाओ

एक तरफ़ा प्यार

नज़र भर देख हम उन्हे
कुछ मुस्कुराते है
उनसे नज़र मिलते ही 
अपनी नज़रें हम झुकाते है
ये एक तरफ़ा प्यार है
जिसका असर और दर्द दोनो हम निभाते है

आँखें खामोश नही रहती
लब कुछ बोल नही पाते
उनके ख़यालों में कट जाती है राते
नाम उनका कई बार लिखते और मिटतें है
कई बार इशारों से अपनी बात उन्हे समझाते है
ये एक तरफ़ा प्यार है
जिसका असर और दर्द दोनो हम निभाते है

हो मश्घुल तुम अपनी मस्ती में
कभी नज़रें घूमाओं तो पता चले यहा मेरा हाल कैसा है
ये इज़हार से इनकार शायद अच्छा है
उमीद है कभी तो तुम समझोगे मेरा प्यार तुम्हारे लिए कितना सच्चा है

ये एक तरफ़ा प्यार है
जिसका असर और दर्द दोनो हम निभाते है!!!!

Tuesday, February 9, 2016

प्रश्नों की उधेड़बुन

हे प्रभु क्यों इतने प्रश्न उठे हर पल हृदय में
जिनका जवाब हम से ना खोजा जाए
नहीं हमें उनके उत्तर ही मिल पाए
काश कि यह प्रश्न ही न बने होते
हम इस उधेड़बुन में तब बिल्कुल न पड़े होते
चैन से  जगते, चैन से सोते 
गहरी चिंतन से कोसों दूर ही रहते
पर अब जब यह प्रश्न है
तो क्या किया जा सकता है
इतना साहस तो करना ही होगा
खोज कर उन्हें कार्यरत तो करना होगा
जो भी फिर भी ना मिल पाए
तो कह दो 
हे प्रभु क्यों इतने प्रश्नों के हर पल हृदय में

Sunday, February 7, 2016

मसलो का हल

प्रक्रति का ये क्रोध कैसा है
कहीं बाढ़, कहीं सैलाब कैसा है
देखिए मेरे देश का हाल ऐसा है
कहीं भुखमरी, कहीं करोड़ो का पैसा है

जहाँ जोरदार धमाकों ने ध्यान बटोरा है
वो बेघर लोगों की सिसकिया कब सुन पाता है
दुख तो सबको ही है
दिखता उसी का है जो दिखा पता है

अगर ये बात अजीब है
यकीन माने, हॉल तो और भी पेचीदा है

मसले खड़े कर मसलो का हल नहीं निकलता
बिना ऐसा किए कोई सिला भी तो नही निकलता

तूफ़ान का आकर निकल जाना भला 
ना के बार - बार तूफ़ान का उठते रहना 
घाव पर बैठे मरहम तुम कब तक मलोगे 
एक बार पलट कर वार भी कर के देखो