प्रक्रति का ये क्रोध कैसा है
कहीं बाढ़, कहीं सैलाब कैसा है
देखिए मेरे देश का हाल ऐसा है
कहीं भुखमरी, कहीं करोड़ो का पैसा है
जहाँ जोरदार धमाकों ने ध्यान बटोरा है
वो बेघर लोगों की सिसकिया कब सुन पाता है
दुख तो सबको ही है
दिखता उसी का है जो दिखा पता है
अगर ये बात अजीब है
यकीन माने, हॉल तो और भी पेचीदा है
मसले खड़े कर मसलो का हल नहीं निकलता
बिना ऐसा किए कोई सिला भी तो नही निकलता
तूफ़ान का आकर निकल जाना भला
ना के बार - बार तूफ़ान का उठते रहना
घाव पर बैठे मरहम तुम कब तक मलोगे
एक बार पलट कर वार भी कर के देखो
No comments:
Post a Comment