Thursday, April 14, 2016

पत्थर की इमारत


इन विशालकाय पत्थर की इमारतों की अपनी एक कहानी है
कभी कोई सुनता इसे किसी की ज़बानी है
तो कभी रह जाती ये बेगानी है
इनमे दबा इतहास का कोई पन्ना है
कुछ भरा हुआ तो कुछ भरना है
कहीं महल, कही स्मारक तो कही मीनार खड़ी है
मानो वक़्त ने प्यार से थामी कोई घड़ी है
युगों -युगों से कई पीढ़ियों की परंपरा यहा पनपी होगी
कई कहानिया मिटी और जन्मी होगी

जो आज भी वर्तमान  को भूतकाल से जोड़ रहा है
राज़ कई ये खोल रहा है 
इन विशालकाय पत्थर की इमारतों की अपनी एक कहानी है
कभी कोई सुनता इसे किसी की ज़बानी है
तो कभी रह जाती ये बेगानी है

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