Saturday, March 5, 2016

छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है



कभी रंग बिरंगे गुब्बाओं को आकाश मे उड़ते देखना
कभी किसी पिंजरे मे बंद पंछी को गगन मे खुला छोड़ना
रात मे टेरेस पर लेट कर चाँद तारों को निहारना
किसी बच्चे का ख़ुसी से खिलखिलाना
इन छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है
बस ऐसे ही लम्हो से ये महफ़िल सजती है

किसी ग़रीब को खाना खिलाना
किसी अंधे को रोड क्रॉस करना 
कई बार अपनी बात को बिना तर्क , ज़िद्द से मनवाना
अपने बचपन के क़िस्से बड़े चाव से सुनाना
बिन मौसम की बारिश मे भीग जाना
सर्दी की रात मे आइस-क्रीम खाना
इन छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है
बस ऐसे ही लम्हो से ये महफ़िल सजती है

मा की गोद मे सर रख कर सोना
किसी की आँखों मे तुम्हारे लिए आपार स्नेह का होना
पूरी रात बस किसी की याद मे गुज़ार देना
कोई अच्छी नज़्म या ग़ज़ल पढ़ना
मंदिर मे बैठ कर आपार शांति का अनुभव करना
दोस्तो के संग बैठ हँसी ठिठोली करना 
सबको भूल! बस अपने मंन की करना 
इन छोटी छोटी खुशियों मे ज़िंदगी बस्ती है
बस ऐसे ही लम्हो से ये महफ़िल सजती है

No comments:

Post a Comment