Sunday, February 14, 2016

इतने भोले नही हम

कभी नटखट, कभी शैतान
कभी भोली, कभी नादान
कभी सच्ची, कभी झूठी
कभी हँसी, कभी रूठी
मेरे दिन कुछ ऐसे गुज़रते है
ये रोज़ के प्यारे पल मेरी आँखो में ठहरते है

पर इतने भोले नही हम
तुम देखकर अनदेखा कर दो
और हम फिर भी मुस्कुराते रहे

तुम अपनी कहो और मेरी ना सुनो
फिर भी हम तुम्हारी सुनते रहे
इतने भोले नही हम

तुम मेरे सपनो का मज़ाक बनाओ
और मै चुप रहूं
इतने भोले नही हम

सब समझ कर भी
ना समझ बने रहे
इतने भोले नही हम

तुम से हो खफा
और तुम्हे इत्तेला भी ना करे
इतने भोले नही हम

आपकी आँखे कुछ और ज़ुबान कुछ कहती है
इतने भोले नही
के ये भी ना समझ सके
हाँ इतने ज़रूर है
की इंतज़ार करेंगे
जब तुम्हारे लब और आँखे एक ही बात मुझसे कहेंगी

इतने भोले नही हम
हर बात भूलकर माफ़ करदे
पर इतने ज़रूर है के
दूसरा मौका देदे

चाहते है के आप हमारी आँखे पढ़ लो
क्यूकी इतने भोले नही हम
की मेरे हाल की इततेल्ला सही से पहुचा दे तुम तक

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