Ek Udaan..Sapno Ki Kalam Se * (एक उड़ान..सपनो की कलम से)
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Tuesday, March 8, 2016
गुनाह
अब तक ज़मा था किसी कोने में
परत दरपरत बढ़ता जा रहा था
जमाने से कैसे मिलता वो
कॅकून सा छुपा बैठा था वो
इतनी गर्त में सच्चाई कौन देख पाता
उसकी नज़रें जब औरो की नज़रों से ना मिलती थी
तो ये बीच की जमी बर्फ कैसे पिघलती??
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