Saturday, October 29, 2016

रुके रुके से ख्वाब

कुछ रुके रुके से ख्वाब है
और कुछ ख्वाब की तलाश है

सबको ज़िंदगी बना मुस्कुराते है
शायद अब भी सच्ची मुस्कान की तलाश है 
हम मीलों का सफर तय कर चुके है 
और आगे भी मंज़िल की तलाश है 

कुछ रुके रुके से ख्वाब है
और कुछ ख्वाब की तलाश है

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