Tuesday, February 9, 2016

प्रश्नों की उधेड़बुन

हे प्रभु क्यों इतने प्रश्न उठे हर पल हृदय में
जिनका जवाब हम से ना खोजा जाए
नहीं हमें उनके उत्तर ही मिल पाए
काश कि यह प्रश्न ही न बने होते
हम इस उधेड़बुन में तब बिल्कुल न पड़े होते
चैन से  जगते, चैन से सोते 
गहरी चिंतन से कोसों दूर ही रहते
पर अब जब यह प्रश्न है
तो क्या किया जा सकता है
इतना साहस तो करना ही होगा
खोज कर उन्हें कार्यरत तो करना होगा
जो भी फिर भी ना मिल पाए
तो कह दो 
हे प्रभु क्यों इतने प्रश्नों के हर पल हृदय में

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