Monday, October 6, 2014

दस्तक

दिल के दरवाज़े पे दस्तक दे गया था वो 
चिलमन की ओट से बार-बार निहारने लगा था वो 
क्या करे ये दो नैना नादान 
होठ तो कुछ न बोलते 
पर आँखों से छेड़ छाड़  करने लगा था वो 
सब सुन्दर लगने लगा था 
उन फूलों की मैंहक 
प्यारी चिड़ियों की चहक 
लब्ज़ नहीं खामोशी बोलती थी 
अचानक ही इतना हल्का महसूस हुआ 
मानो पंछी के संग उड़ रही हूँ क्षितिज तक 

दर्पण को बार- बार निहारने लगी थी मैं 
जाने क्या सोच यूँ मुस्कुराने लगी थी मैं 
अब बस उन यादों में समाने लगी थी मैं 
दिल के दरवाज़े पे दस्तक दे गया था वो

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