Thursday, October 16, 2014

विरान गलियां

विरान  गलियां 

इस विरान सी गलियों में रहता है कोई 
सन्नाटों में भी सन- सन करता है कोई 
सपने तिनको की तरह  बिखर गए है 
अब भी उन तिनकों में आशियाना देखता है कोई 
जहाँ सारी इच्छाएं दम तोड़ देती है 
वहाँ एक नई उम्मीद की कीरन देखता है कोई 

इन तंग गलियो में भी 
स्वछंद साँस लेता है कोई 
जहाँ होड़ में है सब भागते 
वहीं हलके कदम उत्साह से चलता है कोई 

जहाँ सबका है शोशल स्टेटस पर ध्यान 
वहीँ किसी के मायूस चेहरे पर नन्ही सी मुस्कान बिखरता है कोई 
इस रंगीन दुनिया में भी बेरंग रह जाता है कोई 
तो कभी ज़मीन पे जन्मा, आसमान को नापता है कोई 
ये आम आदमी ही, कुछ अनोखा कर गुजरता है कभी 
हाथ की लकीरों को पीछे छोड़ आगे बढ़ चलता है कोई 



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