काँच की रंग बिरंगी, सतरंगी चूड़ियाँ मोह लेती है मन, जैसे नारी
कितनी कोमल होती है नारी, जैसे चूड़ी
नारी की खिलखिलाहट देख बजती है काँच की चूड़ी
नारी की असीम सपनों को दर्शाती है उसके हाथ की सतरंगी चूड़ी
काँच तपकर, गलकर आकृति पा बनती है चूड़ी
जैसे ये सभी ग़ूढ पा बनती है नारी
नारी, सतरंगी चूड़ियाँ से शोभा पाती है
सतरंगी चूड़ियाँ, नारी से शोभा पाती है
नारी के पशयताप मे जलती है, काँच की चूड़ियाँ
नारी के गर्व मे तेज चमति है काँच की चूड़ियाँ
नारी के गम मे चुटकर बिखर जाती है काँच की चूड़ियाँ
काँच पर दरार या चोट के बाद उसका कोई प्रायोजन नही
जैसे समझ ली जाती है नारी
खंडित होने पर ज़िल्लत सहती है नारी
अपशगुन के नाम पर ताल दिया जाता है इनको, जैसे काँच की चूड़ियाँ
नारी के अरमान टूटने से बह जाते है आँखो से नीर
जैसे चूड़ी टूटने पर हाथ से खून
काँच की चूड़ियाँ आग की भट्टी मे जा पिघल जाती है
जैसे नारी भावनाओं मे बह जाती है
वह बाहर से कठोर पर अंदर से कोमल है जैसे ये काँच की चूड़ियाँ
खोशियूं की सौगात है
तो मातम का साधन है,
ये रंग बिरंगी काँच की चूड़ियाँ
नारी की प्रतिमा जैसी ये काँच की चूड़ियाँ
काँच की चूड़ियो जैसी नारी की प्रतिमा
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