गम क्या बाज़ार में मिलता है
जो आँखें बार - बार नम हो जाती है
कभी किसी की याद बनकर
कभी अकेली रात बनकर
कभी होंठों तक ना आ सकी, वो बात बनकर
कभी जुदाई के डर का एहसास बनकर
गम क्या बाज़ार में मिलता है
जो आँखें बार - बार नम हो जाती है
लब पर ये जबरन मुस्कान भी
दिल का हाल कब छुपाती है
ये रोक ना पायें खुद को तो,
आँखों से नीर बहाती है
कभी किसी गैर की तड़प देखकर
कभी खुशियों की अपार सीमा छू लेने पर
कभी जीवन की नाकामयाबी पर
तो कभी किसी की कड़वी बात सुनकर
सुख हो या हो दुख!
आँसू ये छलकाती है
दर्द के सभी रिस्ते ये बखूब ही निभाती है
शायद! गम बाज़ार में मिलता है
जो आँखें बार - बार नम हो जाती है