Thursday, May 19, 2016

आँखे भी camera सा काम करती है.........



आँखे भी camera सा काम करती है
रंगीन यादों को बड़े प्यार से capture करती है
आँखो के हिसाब से अपनी लेंस को adjust करती है 
अपनी convinience पर zoom in and zoom out करती है 
मनचाही पिक्चर को करती है click
फिर पल भर की देर मे करती है store 
बस इशारे भर से खींचती है अपनी ओर  
आँखें तो है दिल तक पहुचने का है एक single door 
ये तो हमेशा ही रहती है autofocus or colour balanced 
सब मिंटो मे हो जाता है save और recorded 
कैमरे से बढ़ियाँ है आँखो का Pixel
इसका funda है बिल्कुल simple
Eye's need no charger
They try to make life, little too larger
शायद आँखे कभी-कभी camera से भी बढ़ियाँ काम करती है
रंगीन यादों को बड़े प्यार से capture करती है

मेरे साथी साथ चलना

जीवन बहुत बड़ा है साथी
हर दिन एक समान नही
कुछ दिन सुख के है आयें
तो कुछ दिन दुख के भी आएँगें
 
जब मैं सुखी हूँ
मेरी रातें चाँदनी है
जब लगता सब प्यारा –प्यारा है
तब कई गिद्द मेरे आगे पीछे मंडराएँगे
मेरे लिए, तो कभी मेरे संग, नाचेंगे गाएँगे
पर तब भी मेरे साथी, गुम ना होना
इन गिद्दो के बीच तुम ना खोना
मेरी दोस्ती याद रखना
साथी मेरे साथ चलना
क्यूकी बाकी सब स्वार्थ के लोभी है
 
कभी जो गयी मेरे नसीब की काया पलट
ये सारे गिद्द मौका पा उड़ जाएँगे
रह जाऊंगी मैं अकेली संघर्ष करती, लड़खड़ाती
तब तुम मेरी बाह थाम लेना
तुम मेरे साथी साथ चलना
याद दोबना ये दिलाना
तुम मेरे सुख- दुख के साथी हो
 
मेरे साथी साथ चलना
क्यूकी हर सुनहरी शाम के बाद
आता है घोर अंधेरा
लेकिन तुम यह मत भूलो
हर नया दिन एक नयी सुबह लाता है
वह फिर अंधकार हर लेता है
और फैलता है उजियारा
यह जीवन का एक क्रम है
जिसमे सुख दुख दोनो
बारी- बारी आता और जाता है
जीवन के कई खेल दिखता है
पर जो मित्र दोनो में साथ निभाता है
सच्चा और अच्छा दोस्त कहलाता है

Monday, May 9, 2016

वो कैसे दिन थे…. ये कैसा दिन आया है

तब देखा था राम सा नर, सीता सी नारी
अब हो गयी है ये बात पुरानी
दोनो पड रहे है एक दूसरे पर भारी
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब लक्ष्मण के भात्रप्रेम ने
राम के साथ वनवास जाना मंजूर किया था
आज अंबानी भाई एक दूसरे को देखने को तैयार नही
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब द्रौपदी की लाज की रक्षा को श्री कृष्णा स्वयं आए थे
यहा दामिनी, निर्भया आख़िर तक अकेले ही लड़ती रही 
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

इतिहास ने कभी हरिशचंद को देखा था
अब वह नेता भी देख लिया
जो हर दिन झूठे वादें बाँटता है
अपने से अपनी बात काटता है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब मुगल राजा अकबर ने सब धर्मो का मे दीन-ए-इलाही को अपनाया था
अब बाबरी मसजिद को ले, मज़हब में हर साल झगड़े हो रहे है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब भगत सिंग ने भारत की आज़ादी को अपनी दुल्हन बताया था
अब हर नुकड पर दिखता अलग नज़ारा है
कम्यूनिस्ट, माओवादी ने बड़े शान से अपना झंडा फहराया है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब गांधीजी ने अहिंसा, देश को बचाने के लिए अपनाई थी
अब हिंसा देश को मिटाने को तैयार है
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब श्रवण कुमार सा आदर्श बेटा था 
अब डॉक्टर तलवार से मा बाप भी देख लिया
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

तब लोग सौ-सौ साल जिया करते थे 
अब तो कल का भी पता नही 
वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

मैं ये नहीं कहती कल की हर बात भली और आज की हर बात बुरी हैं 

पर बीच का फासला ज़रा गहरा हैं 
सच में वो कैसे दिन थे……ये कैसा दिन आया है

Sunday, May 1, 2016

एक रुपये के सिक्के का मोल.....




कभी गये कौड़ियो के मोल
कभी हो गये अनमोल

ग़रीबों के लिए वरदान हो तुम
अमीरों द्वारा दिया दान हो तुम
कभी किसी ने तुम्हे निर्धन की झोली मे डाला 
कभी शुभ समझ कर एन्वेलप मे डाला

कभी 9, 99 तो कभी 999 ऑफर की लालच दे ग्राहक को लुभाया है
कभी तुम्हे ट्रेन की पटरी पर रख अपना करतब दिखाया है

काम तुम कितना आते हो
दूरी भी घटाते हो
कभी STD के कॉल बूथ पर
तो कभी स्टेशन पर रखी Weighing मशीन पर
एक रुपये मे वजन के साथ भविष्य भी बताते हो 
कुछ ही लम्हो मे बोरियत तुम भगाते हो
रंग बिरंगी चॉक्लेट के मज़े भी दिलाते हो

ये है एक रुपये का मोल
जिसका आकार है गोल 
हर दिन एक एक रुपये जोड़कर गुल्लक मे भरते जाओ
ऐसे ही तुम अपनी जमापूंजी को और बढ़ाओ