Sunday, June 21, 2015

ग़ज़ल

जो लौट कर गये थे
कहकर की आनेवाले है
फिर पलटकर क्यों देखा भी नहीं

हमने उसको टोका नहीं
उसने ख़ुद को रोका नहीं
और तकदीर ने दिया, कोई मौका भी नहीं
इंतज़ार जो मेरा नसीब बन गया है
उसे इसकी खबर भी नहीं

कर दिया रुसवा भरे बाज़ार में, बस तेरे इनकार ने
जाने क्यों अब इतनी बेमुर्रवत हो गयी है जिंदगी
कभी देखी थी जन्नत, पर अब मिलन ख़यालो में भी नहीं


Saturday, June 13, 2015

बारिश का मौसम


जब भी नभ में बादल घिरते है 
तब नभ से शीतल नीर बरसते है 
मेघ गरज- गरज कर हमें संगीत सुनते है 
ये अपनी गरिमा से हमें लुभाते है 
नन्हीं -नन्हीं बूंदे  धरती पर गिरती है 
मन को सौंधी खुसबू से भरती है 
हर तरफ खुशी की लहरे है छायी 
किसान बारिश के आगे नत मस्तक हो जाते है 
सुख से अपनी बींजो  को उपजाते है 
चाक की श्रुधा और प्यास जाएगी 
देखा अब हरियाली कालीन धरा पर बिछ जाएगी 
वन में मयूर पर फैलाये नृत्य करने लगे है 
बच्चे  भी पानी में हिलोर, उछल-कूद करने लगे है 
इस बारिश की  बौछार में  करे गरम चाय की प्याली 
 सब के चेहरों पर खिल उठे लाली 
अब रहे न कोई गम 
लो आया बारिश का मौसम 

Friday, June 5, 2015

नर्तकी अब नाच कर ले

नर्तकी अब नाच कर ले

आ गए सब द्वार तेरे 
बैठे चारो ओर तेरे घर को घेरे
मैं भी आया द्वार तेरे 
अपने घर से मुँह फेरे 
नर्तकी अब नाच कर ले 

नर्तकी तेरा नाच देखा 
लोंगो ने तेरे लिए कितना पैसा फेंका 
लेकिन मैं तुझे क्या दूँ, क्योंकि मैं अकेला 
मेरे संग यहाँ मेरा न साथी न कोई चेला 
नर्तकी अब नाच कर ले 

लोग कहते है द्वार तेरे कभी न जाना 
बदनाम होगा जिसने ये कहना न माना 
पर तेरे द्वार आकर मैंने कितना सुकून पाया 
कितनी गजब की है माया 

फिर मैंने सोचा 
सच में तेरा जीवन है क्या 
तू गाती दुसरो के लिए है 
नाचती किसी और के लिए है 
सुख देती है दुसरो को 
और स्वयं आंसुओ के घूंट पीती 
तेरा क्या 
फिर भी बदनाम रहती तू 
नर्तकी फिर भी नाच कर ले तू