Saturday, November 15, 2014

सूरज की किरणे

सुबह जब परदे की ओट से बाहर देखती हूँ 
खिड़की के जालो से छन कर रोशिनी आँखों में चमचमाती है 
आँखों को मसलकर सूरज को उगते देखती हूँ 
धीरे- धीरे आसमान को नए रंगो में सजते देखती हूँ 
सूरज की छटा चारों ओर बिखरते देखती हूँ 
अलसाई आँखों में एक उम्मीद को जागते देखती हूँ 
सूरज की लालिमा सा ख्वाइशों को बढ़ते देखती हूँ 
सूरज की  तपती धुप  में खुद को संघर्ष करते देखती हूँ
तब पेड़ की छांव देख कुछ सुकून के पल टटोलती हूँ 
फिर ख्वाइशों को छूने का दिल करता  है 
पर रात होते होते सब कुछ धीमा हो  जाता है 
सूरज के ढ़लने  पर आस को टूटते देखती हूँ
इसी उतार चढ़ाव में, मेरा जीवन बस चल रहा है


1 comment:

  1. Badiya..khayal bahut pyara hai. :)
    Ek choti si mistake hai - ped ki 'chchaya'(shade) hoti hai aur 'chay'(tea) ka pyala ;)

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