खिड़की के जालो से छन कर रोशिनी आँखों में चमचमाती है
आँखों को मसलकर सूरज को उगते देखती हूँ
धीरे- धीरे आसमान को नए रंगो में सजते देखती हूँ
सूरज की छटा चारों ओर बिखरते देखती हूँ
अलसाई आँखों में एक उम्मीद को जागते देखती हूँ
सूरज की लालिमा सा ख्वाइशों को बढ़ते देखती हूँ
सूरज की तपती धुप में खुद को संघर्ष करते देखती हूँ
तब पेड़ की छांव देख कुछ सुकून के पल टटोलती हूँ
फिर ख्वाइशों को छूने का दिल करता है
पर रात होते होते सब कुछ धीमा हो जाता है
सूरज के ढ़लने पर आस को टूटते देखती हूँ
इसी उतार चढ़ाव में, मेरा जीवन बस चल रहा है
Badiya..khayal bahut pyara hai. :)
ReplyDeleteEk choti si mistake hai - ped ki 'chchaya'(shade) hoti hai aur 'chay'(tea) ka pyala ;)