Sunday, November 19, 2017

बेमौसम की बारिश

बेमौसम की बारिश


बेमौसम ही बरस पड़ी.
रिम झिम बूँदो की ये लड़ी.
मानो कोई प्रयोजन के संग आई है.
गरजता बादल
बरसती बूंदे,
तेज हवा,
ना जाने आज किसकी शामत आई है

बस भिगो देना चाहती है,
मेरे सारे गम और ये चितवन
मानो रुबरो करा रही हो हमे किसी से
या यूँ कहे लुभा रही है मुझे आपनी सौधी खुशबू से
बेमौसम ही बरस पड़ी.
रिम झिम बूँदो की ये लड़ी.
ना संभालने का मौका दिया
ना बहेकने का
बस भिगोती रही

ये बेमौसम की बारिश
बढ़ा गयी हज़ारों ख्वाइश
मैल सारा धूल गया
जा पानी में मिल गया 

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