आज मेहनत नहीं नसीब की बात करता है आदमी
अपनों की नहीं सिर्फ अपनी बात करता है आदमी
अब विचार संकीर्ण होते जा रहे है
मुर्दा घर में भी बड़े शान से चलता है आदमी
ईमानदारी ने जैसे आँख मूँद ली हो
बेशर्मी का नंगा नाच दिखा रहा है आदमी
आज डर का माहौल सजा है
हर तरफ़ बमो और विस्फोटो का चर्चा छिड़ा है
कुछ को ये विनाश छूकर गया है
तो कइयों का चिथड़ा पड़ा है
आज ईश्वर को मन नहीं मंदिरो में खोजा जाता है
जब अन्याय से लड़ने को कोई अकेला खड़ा आवाज़ लगता है
तब दूसरा उससे कुछ कदम दूर चला जाता है
और न्याय भी चादर ओढ़ मीठी नींद सो जाता है
क्या ये सुन्दर गुलस्ता बिखर जाएगा
या कोई इसकी सुरक्षा का भार उठाएगा
शिकायत तो हम तुम हर पल किया करते है
चलो उम्मीद की ज्योत जलाए
एक कदम तुम चलो तो एक कदम हम चलते है