बचपन
बस थोड़ा सा खुलापन चाहिए
दोबारा मुझे अपना बचपन चाहिए
वो सुख में हंसी, तो दुःख में आँसू चाहिए
वो बेफिक्री का आलम चाहिए
वो गुड्डा- गुड्डी का खेल
वो छुक- छुक करती मेरी रेल
वो कागज़ की कस्ती
और उसकी नौका तैर
तितलियों को देखकर उछलना
आइसक्रीम खाने को मन का मचलना
चाँद को भी चंदा मामा बुलाना
ये छोटी- छोटी बातें कितनी याद आती है
वो दादी- नानी की कहानी
वो छन से बरस्ता पानी
वो खिलखिलाता चेहरा वो मासूमियत
वो तुतलाहट और टूटे- फूटे शब्द
कितना अनमोल होता है माँ की गोद में सोना
माँ का लाड़ पाने को झूठ- मुठ का रोना
तब एक छोटे से कमरे में मेरा अपना एक छोटा कमरा बनाती
पर क्यों आज आसमान को छूता मकान चाहिए
बचपन में डॉक्टर, इंजीनियर बनना कितना आसान था
पर बड़े होते ही इन्सान बनाना भी कितना मुश्किल सा जान पड़ता है
AB से बढ़ का बी ए में है जा पहुंचे
तब जानते थे क्या नहीं चाहिए
अब जाना क्या चाहिए
माना पढ़ लिख कर बुद्धि जीव हो गए है
पर बचपन और यौवन में फासला कुछ बढ़ गया है
बचपन की याद तो जैसे जम सी गयी है
पर कभी कुछ पिघलता है
तो बचपन की नासमझी फिर याद आ जाती है
अब न दौलत न शौहरत चाहिए
न ये मुकाम चाहिए
अब ये बेमानी भाव कही छिप जाने चाहिए
सच्चाई का नाता दिल से दोबारा जुड़ जाना चाहिए
बस थोड़ा सा खुलापन चाहिए
दोबारा मुझे अपना बचपन चाहिए
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